15वीं शताब्दी के कवि संत रविदास की आज जयंती है। हिंदू कैलेंडर की मान्यता के अनुसार हर वर्ष माध पूर्णिमा को संत रविदास की जयंती मनाई जाती है। वाराणसी के पास एक गांव में संत रविदास का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म 1450 में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीसंतोख दास और माता का नाम श्रीमति कलसा देवी था। संत रविदास का सौभाव बड़ा ही दयालु था।
वह दूसरे साधु संतों की बहुत सेवा करते थे। इतना ही नहीं वह लोगों के लिए जूते और चप्पल बनाने का काम भी किया करते थे। उन्होंने लोगों को शिक्षा दी कि वह बिना किसी भेदभाव के एक दूसरे से प्रेम करे।
पवित्र नदी में करते है स्नान
इस मौके पर संत रविदास जी को मानने वाले लोग पवित्र नदीं में स्नान करते हैं। उसके बाद वह अपने गुरु के जीवन से जुड़ी घटनाओं से प्रेरणा हासिल करते हैं। इस दिन को उनके अनुयायी एक वार्षिक उतस्व की तरह मनाते है। रवि दास जी के जन्मस्थान पर पहुंचकर एक भव्य कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं। इस कार्यक्रम में रविदास जी के दोहे गाए जाते हैं साथ ही भजन और किर्तन भी किया जाता है।
जानें रविदास जी कैसे बन गए संत
रविदास जी के संत बनने को लेकर कई तरह की कथाएं है। ऐसी ही एक कथा के अनुसार, रविदास जी अपने साथ के साथ खेल हे थे। लेकिन, अगले दिन उनका साथ नहीं आता तो वह उसे ढुंढने के लिए चले जाते हैं। तभी उन्हें पता चलता है कि उसकी मृत्यु हो गई है। ये जानने के बाद रविदास जी का मन बहुत दुखी हुआ। वह अपने दोस्त से बोलते हैं कि उठो ये समय सोने का नहीं है, मेरे साथ खेलो।
इतना सुनने के बाद ही उनके साथ खड़ा हो गया। कहते है ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि, बचपन से ही संत रविदास को ओलौकिक शक्तियां प्राप्त थी। लेकिन, जैसे ही जैसे समय बितता गया उन्होंने अपनी सारी शक्तियां भगवान कृष्ण और राम की भक्ति में लगा दी। इसी तरह लोगों का भले करते करते वह संत बन गए।