देश का आटोमोबाइल उद्योग काफी बेसब्री से आम बजट का इंतजार कर रहा था। पिछले दो दशकों की सबसे बड़ी मंदी से जूझ रहा यह उद्योग अब क्या सोचता है। इस बारे में दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन ने देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुजुकी के नेशनल हेड (मार्केटिंग व सेल्स) शशांक श्रीवास्तव से बात की।
प्रश्न: बजटीय प्रावधानों से क्या आटोमोबाइल उद्योग की मंदी दूर हो सकती है?
उत्तर: इसका साफ तौर पर अभी जवाब देना तो मुश्किल है। सबसे पहले तो देखिए जीएसटी लागू होने के बाद शुल्कों में बदलाव को लेकर हम पहले बजट का इंतजार करते रहते थे, अब वैसा नहीं है। लेकिन फिर भी कई ऐसे उपाय हैं जो परोक्ष तौर पर आटोमोबाइल बाजार को प्रभावित करेंगे। सबसे पहले तो ग्रामीण क्षेत्र के लिए आवंटन में कोई कमा नहीं की गई है बल्कि बढ़ाया गया है। जब गांवों में स्थिति सुधरेगी तो निश्चित तौर पर वहां से वाहनों की भी मांग आएगा।
चूंकि हम 40 फीसद कारें गांवों में बेचते हैं इसलिए हमें ज्यादा फायदा हो सकता है। दूसरा, 30 लाख करोड़ रुपये के कुल खर्चे में 4.37 लाख करोड़ रुपये की राशि समूचे ढांचागत क्षेत्र को दिया जा रहा है। ढांचागत क्षेत्र में ज्यादा पैसा खर्च करने से सभी तरह के वाहनों की मांग बढ़ेगी। तीसरा असर, वित्त मंत्री के भाषण मे जिस तरह से कारोबार के लायक माहौल बनाने का काम किया है उसका होगा। वैसे सरकार ने पहले ही कारपोरेट टैक्स में कटौती कर एक माहौल बनाई है जिसका भी असर आटोमोबाइल सेक्टर पर पड़ेगा। वैसे आटोमाबइल उद्योग में इस्तेमाल होने वाले खनिजों पर सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया है जिसका नकारात्मक असर भी पड़ेगा।
प्रश्न: तो क्या उम्मीद किया जाए कि कार बाजार की मंदी अब दूर हो सकेगी?
उत्तर: यह कहना अभी मुश्किल है। इसलिए मुश्किल है कि बाजार अभी परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। सारी कंपनियां बीएस-6 व अन्य मानकों के मुताबिक वाहनों को लांच कर चुकी हैं या करने जा रही हैं। वाहनों की कीमतें पहले से बढ़ी हुई हैं। वैसे जनवरी में ग्रामीण बाजार में मांग बढ़ी है जो एक सकारात्मक संकेत है। लेकिन कीमत बढ़ने को लेकर ग्राहक कैसे देखता है, यह अभी सामने आना बाकी है। साफ तौर पर कुछ भी अभी नहीं कहा जा सकता।
प्रश्न: सरकार की तरफ से इलेक्टि्रक कारों को बढ़ावा देने को लेकर काफी बातें हो रही हैं, क्या बजट में जो कदम उठाये गये हैं उससे आप संतुष्ट हैं?
उत्तर: सरकार निश्चित तौर पर बिजली से चलने वाली कारों को बढ़ावा देने की बात कर रही है और बजट में या उसके पहले भी कुछ घोषणाएं हुई हैं। लेकिन भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में अभी इलेक्टि्रक कारों की राह में काफी दिक्कत है। सबसे बड़ी समस्या बैट्री की कीमतों को लेकर है। अगर मैं उदाहरण दे कर कहूं तो दो बड़ी कार कंपनियों ने पिछले कुछ महीनों में अपनी इलेक्ट्रिक कारें लांच की हैं। एक की कीमत 24-25 लाख रुपये है जबकि दूसरी की 14 लाख रुपये। इनकी सामान्य (पेट्रोल वाली) की कीमत क्रमश: 12 लाख रुपये या 6 लाख रुपये है। यानी सिर्फ बैट्री की वजह से कीमत दोगुनी हो गई है।
अभी तक कोई तकनीकी सामने नहीं आई है जो बैट्री की कीमत में भारी कटौती करने की बात करे। दूसरी समस्या चार्जिग की है। भारत में सिर्फ 12 फीसद कार मालिकों के पास अपनी पार्किग है जहां वह चार्जिग की सुविधा लगा सकता है। बाकी कारों को सड़कों पर या गलियों में पार्क किया जाता है और इन्हें पार्क करने की कोई निश्चित स्थान नहीं है। जबकि चार्जिग के लिए आपको 8-10 घंटे चाहिए। यह बड़ी समस्या है जिसका समाधान हमें खोजना होगा। इन दोनो समस्याओं का समाधान हमें निकालना होगा तभी भारत में इलेक्टि्रक कारों की राह निकलेगी। यह काम सिर्फ बजट से नहीं होगा। वैसे दुनिया के बाकी देशों में भी कोई खास प्रगति नहीं हुई है।
प्रश्न: आपकी कंपनी की इलेक्टि्रक कारों को लेकर क्या योजना है?
उत्तर: कंपनी के तौर पर हमारी योजना किसी से भी कम नहीं है। हम अभी तकरीबन 15 इलेक्टि्रक कारों के विभिन्न मॉडल तैयार कर चुके हैं और इनका भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पहाड़ों में, रेगिस्तान में, शहरों में, ग्रामीण इलाकों में, समुद्री किनारे में इसकी टेस्टिंग कर रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उक्त सभी 15 मॉडल भारत में लांच करेंगे। हम जो भी करेंगे वह तीन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए फैसला करेंगे। सबसे पहले इस बात का ख्याल रखेंगे कि ग्राहकों को जिसकी जरुरत होगी हम वही देंगे। दूसरा, हम कुछ विशेष लोगों के लिए उत्पाद नहीं बनाएंगे बल्कि बड़े समूह के लिए बनाएंगे यानी ऐसा उत्पाद लाएंगे जिसे बड़े पैमाने पर लोग स्वीकार कर सकें। तीसरा, हम स्थाई व उपयोगी उत्पाद देंगे।