देश के स्वतंत्रता आंदोलन में लाला लाजपतराय का महत्वपूर्ण योगदान रहा। वो अपनी रचनाओं से भी लोगों को देशप्रेम और स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करते रहते थे। भारत को स्वाधीनता दिलाने में उनका त्याग, बलिदान तथा देशभक्ति अद्वितीय और अनुपम थी। उनका साहित्य-लेखन एक महत्वपूर्ण आयाम है। वे ऊर्दू तथा अंग्रेजी के समर्थ रचनाकार थे।
भारत की आजादी के आंदोलन के एक प्रखर नेता लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) की 28 जनवरी को जयंती मनाई जाती है। वो 28 जनवरी 1865 को फिरोजपुर जिले के ढुडिके गांव में पैदा हुए थे। किशोरावस्था में स्वामी दयानंद सरस्वती (Dayananda Saraswati) से मिलने के बाद आर्य समाजी विचारों ने उन्हें प्रेरित किया साथ ही वे आजादी के संग्राम में तिलक के राष्ट्रीय चिंतन से भी बेहद प्रभावित रहे।
लाला लाजपत राय ने बड़े होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कई बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया। 3 फरवरी 1928 को जब साइमन कमीशन भारत आया था तो उसके विरोध में पूरे देश में आग भड़की थी। लाला लाजपतराय ने इसके विरोध में लाहौर में आयोजित बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेजी की हुकूमत को हिला दिला। इस आंदोलन में अंग्रेजों ने जनता पर लाठियां बरसाई। लाठियों के वार के कारण लाला लाजपतराय 17 नवंबर 1928 को शहीद हो गए थे।
शिक्षा-दीक्षा
लाला लाजपत राय ने 1880 में कलकत्ता तथा पंजाब विश्वविद्यालय से एंट्रेंस की परीक्षा एक वर्ष में पास की और आगे पढ़ने के लिए लाहौर आए। 1982 में एफए की परीक्षा पास की और इसी दौरान वे आर्यसमाज के सम्पर्क में आए और उसके सदस्य बन गये।
एक सफल वकील
लाला लागपत राय ने एक मुख्तार के रूप में भी काम किया था। एक सफल वकील के रूप में 1892 तक वे हिसार में रहें। जिसके बाद वे लाहौर आए और आर्यसमाज के अतिरिक्त्त राजनैतिक आंदोलन के साथ जुड़ गये। 1988 में वे पहली बार कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में सम्मिलित हुए। जसकी अध्यक्षता मिस्टर जॉर्ज यूलने की थी। लाला लाजपतराय ने अपने सहयोगियों-लोकमान्य तिलक तथा विपिनचन्द्र पाल के साथ मिलकर कांग्रेस में उग्र विचारों का प्रवेश कराया। 1885 में अपनी स्थापना से लेकर लगभग बीस वर्षो तक कांग्रेस ने एक राजभवन संस्था का चरित्र बनाये रखा था।
बंगाल का विभाजन
लालाजी स्वदेश आये और देशवासियों ने उनका स्वागत किया। अंग्रेजों ने जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो लालाजी ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेजों के इस फैसले का जमकर विरोध किया।
आखिरी सांस
लाहौर में आयोजित बड़े आंदोलन का नेतृत्व का वो नेतृत्व कर रहे थे। पुलिस से ये आंदोलन कंट्रोल नहीं हो रहा था। इसी दौरान लाठी चार्ज करने का आदेश मिला, उसी समय अंग्रेज सार्जेंट साण्डर्स ने लाला जी की छाती पर लाठी का प्रहार किया जिससे उन्हें सख्त चोट पहुंची। उसी शाम लाहौर की एक विशाल जनसभा में एकत्रित जनता को सम्बोधित करते हुए लाला ने कहा मेरे शरीर पर पड़ी लाठी की प्रत्येक चोट अंग्रेजी साम्राज्य के कफन की कील का काम करेगी। जिसके बाद उन्हें 18 दिन तक बुखार रहा था। इसी के बाद 17 नवम्बर 1928 को उन्होंने आखिरी सांस ली थी।
लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया। इन जांबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसम्बर 1928 को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।
अंग्रेजों वापस जाओ का नारा दिया
साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लालाजी ने ‘अंग्रेजों वापस जाओ’ का नारा दिया और कमीशन का डटकर विरोध जताया। इसके जवाब में अंग्रेजों ने उन पर लाठीचार्ज किया पर लाला जी पर आजादी का जुनून सवार था। लालाजी ने अपने अंतिम भाषण में कहा कि ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की कील बनेगी’।
बिट्रिश शासन से मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त हुआ
लाला लाजपतराय के प्रयासों से बिट्रिश शासन से मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त हुआ। लाला लाजपतराय के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन पंजाब में पूरी तरह से सफल रहा, जिस कारण लाला लाजपतराय को पंजाब का शेर व पंजाब केसरी के नाम से पुकारा जाने लगा। लाला लाजपत राय युवाओं के प्रेरणा स्रोत थे। उनसे प्रेरित होकर ही भगत सिंह, उधम सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि देशभक्तों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था।
इंग्लैंड का दौरा
प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) के दौरान लाला लाजपत राय एक प्रतिनिधि मण्डल के सदस्य के रूप में इंग्लैंड गए और देश की आजादी के लिए प्रबल जनमत जागृत किया। वहां से वे जापान होते हुए अमेरिका चले गये और स्वाधीनता-प्रेमी अमेरिकावासियों के समक्ष भारत की स्वाधीनता का पथ प्रबलता से प्रस्तुत किया।
गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक
लाला लाजपत राय ने पंजाब में पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना भी की थी। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। उन्होंने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की।
आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया
लाला लाजपत राय ने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। लाला हंसराज के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया, लोग जिन्हें आजकल डीएवी स्कूल्स व कालेज के नाम से जाना जाता है। लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा भी की थी।