कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों पर अभी सबकी नजर है. राज्य की सियासी तस्वीर तो मंगलवार को मतगणना के बाद ही तस्वीर साफ होगी लेकिन एग्जिट पोल त्रिशंकु विधानसभा की ओर इशारा कर रहे हैं. ऐसे में सबकी निगाहें जेडीएस पर टिक गई हैं.
त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी तो?
जेडीएस को सभी एग्जिट पोल में 30 से 35 सीटें मिलती दिख रही हैं. ऐसे में बहुमत के लिए जरूरी 112 सीटों के जादुई आंकड़ों तक पहुंचने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों को जेडीएस की जरूरत पड़ सकती है. अब सवाल ये है कि जेडीएस इनमें से किसके साथ जाना पसंद करेगी? इसके लिए जनता दल सेक्युलर की सियासत को समझने की जरूरत है. पार्टी का दांव, धार्मिक-जातिय समीकरण, विचारधारा और कमजोर-मजबूत पक्ष क्या है.
पिछले चुनावों में क्या रही थी जेडीएस की स्थिति
कर्नाटक में जेडीएस अलग अस्तित्व में है तो केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट का हिस्सा. जेडीएस कांग्रेस और बीजेपी दोनों के साथ मिलकर सरकार बना चुकी है. 1999 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस को 10 सीटें, जबकि 10.42 फीसदी वोट हासिल हुए थे. 2004 में 59 सीट और 20.77 फीसदी वोट. 2008 में 28 सीट और 18.96 फीसदी वोट. 2013 में 40 सीट और 20.09 फीसदी वोट हासिल हुए थे.
कांग्रेस से देवगौड़ा का है पुराना कनेक्शन
जेडीएस की स्थापना एचडी देवगौड़ा ने 1999 में जनता दल से अलग होकर की थी. जनता दल की जड़ें 1977 में कांग्रेस के खिलाफ बनी जनता पार्टी से शुरू होती है. इसी में से कई दल और नेताओं ने बाद में जनता दल बनाई. कर्नाटक में जनता दल की कमान देवगौड़ा के हाथों में थी. उन्हीं के नेतृत्व में जनता दल ने 1994 में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई और देवगौड़ा मुख्यमंत्री बने.
सियासत में बदलते रहते हैं समीकरण
दो साल के बाद 1996 में जनता दल के नेता के रूप में कांग्रेस के समर्थन से एचडी देवगौड़ा 10 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे. इससे पहले अगर जाकर देखें तो 1953 में देवगौड़ा ने अपनी सियासत की शुरुआत भी कांग्रेस नेता के रूप में ही की थी, लेकिन पहली बार वो निर्दलीय के तौर पर विधायक बने थे. फिर इमरजेंसी के दौरान जेपी मूवमेंट से जुड़े और जनता दल में आ गए.
बीजेपी के साथ भी कर्नाटक में बनाई सरकार
देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी राज्य में बीजेपी के समर्थन से भी सरकार चला चुके हैं. 2004 के चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई थी और कांग्रेस के धरम सिंह सीएम बने. लेकिन 2006 में जेडीएस गठबंधन सरकार से अलग हो गई. फिर बीजेपी के साथ बारी-बारी से सत्ता संभालने के समझौते के तहत कुमारस्वामी जनवरी 2006 में सीएम बने. लेकिन अगले साल सत्ता बीजेपी को सौंपने की जगह कुमारस्वामी ने अक्टूबर 2007 में राज्यपाल को इस्तीफा भेज दिया. जिसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा. हालांकि, बाद में जेडीएस ने बीजेपी को समर्थन का ऐलान किया. इस समझौते के तहत 12 नवंबर 2007 को बी. एस. येदियुरप्पा 7 दिन के लिए सीएम बने थे.
2008 से अलग हैं रास्ते
2008 के चुनाव में जेडीएस-बीजेपी अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरे और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. 2013 में कांग्रेस जीती और सिद्धारमैया सीएम बने. 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के बनने के बाद सेकुलर पॉलिटिक्स की चर्चा चली तो जेडीएस ने अपनी सियासत में फिर बदलाव किया. 14 अप्रैल 2015 को जेडीएस और 5 अन्य दलों जेडीयू-आरजेडी-सपा-इनेलो और सजपा ने बीजेपी विरोधी न्यू जनता पार्टी परिवार गठबंधन का ऐलान किया. लेकिन बाद में बिहार में आरजेडी-जेडीयू अलग हो गए और जनता परिवार के इस गठबंधन को लेकर भी कोई ठोस पहल सामने नहीं आई.
ममता ने कांग्रेस को दी थी सलाह
जिस दिन कर्नाटक चुनाव का ऐलान हुआ था उसी दिन पश्चिम बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस चीफ ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अपील की थी कि देवगौड़ा एक अच्छे इंसान हैं और कर्नाटक में बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस को जेडीएस से हाथ मिलाना चाहिए. उसी दिन परदे के पीछे कई मुलाकातें भी हुईं. देवगौड़ा ने कांग्रेस को साथ आने का न्योता भी दे दिया. लेकिन कुछ ही घंटों में देवगौड़ा और कुमारस्वामी ने यू-टर्न ले लिया और ग्रेस-बीजेपी से किसी भी गठबंधन की संभावनाओं को नकारने लगे. जेडीएस ने बसपा और एनसीपी के साथ गठबंधन किया और ओवैसी की पार्टी के समर्थन से चुनाव में उतरी. यहीं से कांग्रेस और जेडीएस में तल्ख बयानबाजी शुरू हुई जो आज तक थमी नहीं है.
एक ही वोट बैंक कांग्रेस-जेडीएस की तल्खी का कारण
कांग्रेस के लिए जेडीएस इसलिए खतरा दिख रही है क्योंकि मुस्लिम, दलित वोटों को काटने से उसे ही नुकसान पहुंच सकता है. इसलिए कांग्रेस जेडीएस को बीजेपी की बी टीम साबित करने में जुटी रही. जानकार बताते हैं कि जेडीएस-कांग्रेस के बीच गठबंधन स्वाभाविक नहीं था. राज्य की 60-65 सीटों पर कांग्रेस और जेडीएस में सीधा मुकाबला है. राहुल गांधी ने जेडीएस को बीजेपी की बी-टीम बताया तो बीजेपी ने नरम रुख दिखाया. बीजेपी की रैलियों में जहां कांग्रेस पर खुलकर वार हुआ वहीं जेडीएस पर ज्यादा कुछ नहीं बोला गया. खुद पीएम मोदी ने कर्नाटक की रैली में कहा कि राहुल गांधी को देवगौड़ा जैसे वरिष्ठ नेता का अपमान नहीं करना चाहिए था. ये अहंकार दिखाता है. कर्नाटक का सियासी इतिहास काफी जटिल रहा है. 1985 के बाद वहां कोई भी दल दोबारा सत्ता में वापस नहीं लौट सका है. जेडीएस ओल्ड मैसूर क्षेत्र में अच्छी खासी पैठ रखती है. ये देवगौड़ा परिवार का गढ़ माना जाता है. हालांकि, 2013 के चुनाव में कांग्रेस यहां सेंध लगाने में कामयाब रही थी.
वोक्कालिगा-लिंगायत फाइट में जेडीएस को फायदा
एचडी देवगौड़ा वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. कर्नाटक में 15 फीसदी आबादी वाला वोक्कालिगा समुदाय मुख्य तौर पर जेडीएस का वोट बैंक माना जाता है. राज्य में अब तक वोक्कालिगा समाज के 6 सीएम बन चुके हैं. लिंगायत कार्ड पर बीजेपी-कांग्रेस के दांव लगाने से ये वोट बैंक फिर जेडीएस के पाले में जा सकता है. वोक्कालिगा समुदाय दक्षिण के जिलों में फैला हुआ है.
दलित-मुस्लिम वोटों का समीकरण
कर्नाटक में दलित समुदाय का 19 फीसदी वोट भी काफी मायने रखता है. दलित मतदाता सबसे ज्यादा हैं. हालांकि, इसमें काफी फूट है लेकिन बसपा के साथ गठबंधन कर जेडीएस इस वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए है. इसके अलावा कांग्रेस के साथ जेडीएस की लड़ाई मुस्लिम वोट बैंक को लेकर भी है. अगर जेडीएस इन सबमें पैठ बनाने में कामयाब हुई तो कांग्रेस को ही नुकसान होगा. दक्षिणी जिलों में बीजेपी को उम्मीद कांग्रेस के पूर्व नेता और राज्य के पूर्व सीएम एस. एम कृष्णा से है जो इस बार बीजेपी के पाले में आ चुके हैं.
कुल मिलाकर देखा जाए तो इस बार त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में जेडीएस किंगमेकर के रोल में आ सकती है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों के साथ जेडीएस सरकार बना चुकी है ऐसे में किसी भी खेमे में जाना उसके लिए संभव है.
किस खेमे में जाकर क्या मिलेगा जेडीएस को
बीजेपी के साथ जाकर जेडीएस केंद्र की सत्ता में भागीदारी पा सकती है और 2019 के लिए चुनाव के लिए एनडीए का हिस्सा बन सकती है. साथ ही जेडीएस के लिए कांग्रेस के खेमे में जाना भी असंभव नहीं है. कर्नाटक में जेडीएस बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी है और बसपा बीजेपी के खिलाफ देश की सियासत में कांग्रेस के साथ खड़ी नजर आती है. इसके अलावा केरल में जेडीएस लेफ्ट विंग का हिस्सा है जो कि बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के साथ हाल के महीनों में खड़ी नजर आ रही है. अब देखना होगा कि चुनाव नतीजे क्या स्थिति उत्पन्न करते हैं. किसी दल को स्पष्ट बहुमत मिलता है या त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति आती है.