नागरिकता संशोधन कानून पर देश के कई राज्यों में हो रहे विरोध पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते और भाजपा नेता चंद्र कुमार बोस का कहना है कि एक बार कोई बिल अगर एक अधिनियम के रूप में पारित हो जाता है, तो इसके बाद यह राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी है, यह कानूनी स्थिति है। हालांकि, एक लोकतांत्रिक देश में आप नागरिकों पर किसी भी अधिनियम को थोप नहीं सकते हैं।
सीके बोस ने कहा, ‘मैंने अपनी पार्टी के नेतृत्व को सुझाव दिया है कि सिर्फ थोड़े-सा संशोधन विपक्ष के पूरे अभियान पर पानी फेर सकता है। हमें विशेष रूप से यह बताने की आवश्यकता है कि यह उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के लिए है, हमें किसी धर्म का उल्लेख नहीं करना चाहिए। हमारा दृष्टिकोण अलग होना चाहिए। हमारा काम लोगों को यह समझाना है कि हम सही हैं और वे गलत हैं। आप अपमानजनक नहीं हो सकते। सिर्फ इसलिए कि आज हमारे पास संख्या है, हम आतंकी राजनीति नहीं कर सकते। हमें सीएए के लाभों के बारे में लोगों को बताना चाहिए।
वहीं, हरियाणा के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने सीएए पर कहा कि एक बार जब कोई कानून संसद द्वारा पारित कर दिया जाता है, तो मुझे लगता है कि संवैधानिक दृष्टिकोण यह है कि कोई भी राज्य इसे मना नहीं कर सकता है। इस कानून को मानना भी नहीं चाहिए, लेकिन इसको कानूनी तौर पर जांचा जाना चाहिए।
गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून व राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के विरोध में दिल्ली, पश्चिम बंगाल, असम और महाराष्ट्र के अलावा कई राज्यों में प्रदर्शन को रहा है। दिल्ली के शाहीन बाग में बीते एक माह से अधिक समय से धरना चल रहा है। हालांकि, केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि किसी भी स्थिति में कानून को वापस नहीं लिया जाएगा। बता दें कि नागरिकता कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के उत्पीडि़त अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान है। इसमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को शामिल किया गया है। विपक्ष का आरोप है कि ये कानून धर्म के आधार पर लोगों को तोड़ने का काम कर रहा है। हालांकि, ऐसा कुछ नहीं है। दरअसल, ये कानून भारत के किसी शख्स की नागरिकता नहीं छीनता है। इस कानून में सिर्फ विदेशियों को नागरिकता देने का प्रावधान है।