पिछले कुछ समय से कानपुर में लेदर इंडस्ट्री हिली हुई है। बढ़े खर्च और टेनरियों की आए दिन बंदी से इस इंडस्ट्री का संकट बहुत अधिक बढ़ गया है। प्रदेश को सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा देने वाला यह उद्योग सिमटकर आधा रह गया है। ऐसे में Budget 2020 से पहले उद्यमियों और निर्यातकों की यही मांग है कि सरकार इस उद्योग को पूरी क्षमता से निर्बाध चलते रहने की व्यवस्था बनाए। कानपुर चमड़ा उद्योग के लड़खड़ाने से इससे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जुड़े करीब 12 लाख लोगों की आजीविका पर असर पड़ा है। वैश्विक बाजार में यहां के निर्यातक नकारे जा रहे हैं। वक्त पर सप्लाई न दे पाने के कारण आयातक उनसे मुंह मोड़ने लगे हैं।
केंद्र सरकार से एक साल पहले मिला 2600 करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज उद्योगों के न चलने से नाकाम होकर रह गया। उद्यमियों का कहना है कि वे पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए स्वयं भरपूर प्रयास करने के पक्ष में हैं लेकिन सरकार से गुजारिश है कि इस दिशा में ढांचागत इंतजाम में सहयोग करे। Budget Expectations को लेकर उद्योग का कहना है कि यदि वह लालफीताशाही से मुक्त हो जाए तो कानपुर फिर विश्व में अपनी धाक जमा लेगा।
खास है कानपुर
वित्त वर्ष 2016-17 में उत्तर प्रदेश ने कुल 84282.89 करोड़ रुपये का निर्यात किया था। इसमें चमड़ा उत्पादों की हिस्सेदारी 12.47 फीसद यानी 10508.50 करोड़ रुपये थी। इसमें करीब 7,000 करोड़ की हिस्सेदारी कानपुर के चमड़ा उद्योग की थी।
गंवाई 4100 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा
वित्त वर्ष 2017-18 में कानपुर क्षेत्र से चमड़ा उत्पाद का निर्यात बढ़कर 8500 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया था। इसके बाद इसमें गिरावट का दौर शुरू हो गया। 2018-19 में निर्यात घटकर 6500 करोड़ पर आ गया। चालू वित्त वर्ष 2019-2020 में निर्यात में 32 फीसद की गिरावट है। वित्त वर्ष के आखिर तक कुल निर्यात 4400 करोड़ रुपये पर सिमटने के आसार हैं।
बंगाल बढ़ रहा आगे
उत्तर प्रदेश सरकार ने कानपुर में उद्योग स्थापना के 1841 करोड़ रुपये के निवेश करार किए, जिसमें 200 करोड़ का निवेश भी जमीन पर नहीं उतरा। वहीं, तीन गुना सस्ती जमीन, उद्योग चलने की गारंटी और सरकार से ढांचागत व्यवस्था मिलने के कारण चमड़ा उद्योग का 700 करोड़ रुपये का निवेश बंगाल चला गया।