सनातन धर्म में सूर्य आराधना का महापर्व मकर संक्रांति लोक मंगल को समर्पित है। स्नान-दान और खानपान का यह पर्व पिछले कई वर्षों की तरह इस बार भी 15 जनवरी को पड़ रहा है। दीर्घायु, आरोग्य, धन-धान्य, ऐश्वर्य समेत सर्व मंगल के कारक प्रत्यक्ष देव सूर्य धनु से मकर राशि में सुबह 8:24 बजे प्रवेश कर जाएंगे। इससे भी पहले सूर्योदय के साथ ही मकर संक्रांति जन्य पुण्य काल शुरू हो जाएगा, जो सूर्यास्त तक रहेगा। ऐसे में 15 जनवरी की सुबह से शाम तक पर्व विशेष के स्नान-दान विधान पूरे किए जा सकेंगे।
स्नान दान, पूजन विधान
आध्यात्मिक नगरी वाराणसी के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार तिथि विशेष पर गंगा, प्रयागराज संगम समेत नदी, सरोवर, कुंड आदि में स्नान के साथ सूर्य को अर्घय देने और दान का विशेष महत्व है। स्नानोपरांत सूर्य सहस्त्रनाम, आदित्य हृदय स्त्रोत, सूर्य चालीसा, सूर्य मंत्रादि का पाठ कर सूर्य की आराधना करनी चाहिए। साथ ही गुड़, तिल, कंबल, खिचड़ी, चावल आदि पुरोहितों या गरीबों को प्रदान करना चाहिए। वायु पुराण में मकर संक्रांति पर तांबूल दान का भी विशेष महत्व बताया गया है।
उत्तरायण सूर्यदेव
ज्योतिष शास्त्र में संक्रांति का शाब्दिक अर्थ सूर्य या किसी भी ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश या संक्रमण बताया गया है। मकर संक्रांति पर्व भगवान सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का संधि काल है। उत्तरायण में पृथ्वीवासियों पर सूर्य का प्रभाव तो दक्षिणायन में चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है। सूर्यदेव छह माह उत्तरायण (मकर से मिथुन राशि तक) व छह माह दक्षिणायन (कर्क से धनु राशि तक) रहते हैं। उत्तरायण देवगण का दिन तो दक्षिणायन रात्रि मानी जाती है। ज्योतिष के अनुसार किसी की कुंडली में आठों ग्रह प्रतिकूल हों तो उत्तरायण सूर्य आराधना मात्र से सभी मनोनुकूल हो जाते हैं।
खरमास का समापन, शुरू हो जाएंगे मांगलिक कार्य
सूर्यदेव के 15 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश के साथ ही एक मास से चले आ रहे खरमास का समापन हो जाएगा। इसी दिन से शादी-विवाह समेत मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। खास यह कि इस बार जनवरी से लेकर जून तक 67 लगन-मुहूर्त मिल रहे हैं। सूर्य के उत्तरायण काल ही शुभ कार्य के जाते हैं। सूर्य जब मकर, कुंभ, वृष, मीन, मेष और मिथुन राशि में रहता है, तब उसे उत्तरायण कहा जाता है। इसके अलावा सूर्य जब सिंह, कन्या, कर्क, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में रहता है, तब उसे दक्षिणायन कहते हैं। इस वजह से इसका राशियों पर भी गहरा असर पड़ता है। इस वर्ष राशियों में ये परिवर्तन 14 जनवरी की देर रात हो रहा है, इसलिए इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। इसी वजह से प्रयाग में भी पहला शाही स्नान 15 जनवरी को होगा।
वाराणसी के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार
तिथि में अंतर का कारण
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार यह वैज्ञानिक सत्य है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 365 दिन व 6 घंटे में पूरा करती है। वहीं चंद्र गणना के अनुसार 354 दिन का एक वर्ष होता है। इस प्रकार सूर्य गणना व चंद्र गणना के तरीके में प्रत्येक वर्ष 11 दिन तीन घड़ी व 46 पल का अंतर आता है। इसी कारण प्रमुख त्योहारों की तिथियां आगे-पीछे होती हैं, लेकिन मकर संक्रांति भगवान भाष्कर से जुड़ा है जो बारह राशियों में प्रवेश करता है। राशि प्रवेश को संक्रांति कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार जिस साल सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी की रात को होता है, उस वर्ष मकर संक्रांति दूसरे दिन सुबह यानी 15 जनवरी को मान्य होती है।
वसंत का आगमन
कुछ लोग इसे वसंत के आगमन के तौर पर भी देखते हैं, जिसका मतलब होता है फसलों की कटाई और पेड़-पौधों के पल्लवित होने की शुरूआत। इसलिए देश के अलग-अलग राज्यों में इस त्योहार को विभिन्न नामों से मनाया जाता है।