कहा- जम्मू में नेट पर बेमियादी पाबंदी नहीं लगाई जा सकती
धारा 144 लगाना भी न्यायिक समीक्षा के दायरे में आएगा
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इंटरनेट की सेवाएं अभिव्यक्ति की आजादी का एक हिस्सा है और उसे बिना कारण और समय बताए निलंबित नहीं किया जा सकता है। जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने जम्मू-कश्मीर में मोबाइल-इंटरनेट बंद करने और लोगों की आवाजाही पर रोक के खिलाफ दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए ये बातें कहीं। 27 नवम्बर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट पर अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। इसकी समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इंटरनेट सस्पेंड करने वाले सभी आदेशों की सात दिनों के अंदर समीक्षा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि धारा 144 लगाना भी न्यायिक समीक्षा के दायरे में आएगा।
कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी और इंटरनेट के जरिये व्यापार करना संविधान की धारा 19(1) के तहत सुरक्षित है औऱ उस पर धारा 19(2) में वर्णित वजहों से ही रोक लगाया जा सकता है। कोर्ट ने साफ कहा कि सरकार के खिलाफ आवाज उठाना इंटरनेट पर पाबंदी लगाने की वजह नहीं बन सकता है। पूरे तरीके से इंटरनेट बंद करना एक कठोर कदम है और सरकार ऐसा तभी कर सकती है जब स्थिति से निपटने के लिए कोई दूसरा उपाय नहीं बचा हो। कोर्ट ने कहा कि जब भी सरकार इंटरनेट को सस्पेंड करने का फैसला करे उसे इसके पीछे की वजह को विस्तृत रुप से बताना होगा।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि पाबंदियां अवैध तरीके से लगाई गईं। इनके जरिए मौलिक अधिकारों का हनन किया गया है।तीन महीने से ज्यादा समय से कई तरह के प्रतिबंध जारी हैं। याचिकाओं में कहा गया था पाबंदी से लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। ये पाबंदियां लगाने का तरीका भी अवैध था। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि लोगों की आजादी और अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाना संविधान की धारा 19 के साथ-साथ निजता के अधिकार का उल्लघंन है। उन्होंने कहा कि इतने लंबे समय तक प्रतिबंध संविधान की धारा 352 के तहत ही लगाए जा सकते हैं। इस तरह के प्रतिबंध मजिस्ट्रेट के जरिए धारा 144 के तहत नहीं लगाए जा सकते हैं।
केंद्र की ओर से तुषार मेहता ने कहा था कि जो लोग दूसरे लोगों के लिए समस्या पैदा कर रहे हैं, उन पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाए। मेहता ने कहा था कि उन लोगों को अलग करना कठिन है, जिन्हें सुरक्षा देनी है, इसलिए सबके लिए प्रतिबंधों का सामान्य आदेश जारी किया गया। याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा था कि संविधान की धारा 19 अधिकारों के संतुलन के लिए है। यही वजह है कि हम पूछ रहे हैं कि लैंडलाइन क्यों बंद किए गए और बच्चे स्कूल क्यों नहीं गए।