वैश्विक पटल पर गूंज रही हिंदी, सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में शुमार

 हिंदी सिर्फ भाषा नहीं है जो सिर्फ सीखी जा सके, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की संवाहक है। जिसके जरिए आप करीब पांच हजार साल पुरानी संस्कृति से जुड़ सकते हैं। यही कारण है कि भारत के साथ दूसरे देशों में र्भी हिंदी का प्रचार-प्रसार बढ़ा है। हिंदी विदेशियों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब हुई है। वैश्विक स्तर पर कई विश्वविद्यालयों में हिंदी सिखाई जा रही है और लोग भारत की संस्कृति से जुड़ाव महसूस कर रहे हैं। विश्व हिंदी दिवस का उद्देश्य हिंदी को वैश्विक स्तर पर और आगे बढ़ाना है।

मनाए जाने की वजह

पहला विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन 10 जनवरी 1976 को नागपुर में किया गया था। इसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने शिरकत की थी। इसीलिए इस तारीख को चुना गया। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने 2006 से 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाने की घोषणा की थी। तब से लगातार विश्व हिंदी दिवस मनाया जा रहा है। हिंदी दिवस 14 सितंबर को हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस के अंतर को समझना जरूरी है। हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है, जबकि विश्व हिंदी दिवस का आयोजन 10 जनवरी को किया जाता है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा र्ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया था। तभी से हिंदी दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्र्य हिंदी का प्रचार प्रसार है।

सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में शुमार

दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली पांच भाषाओं में हिंदी शुमार है। चीन की मंडारिन भाषा पहले पायदान पर है, जबकि दूसरे स्थान पर स्पेनिश और तीसरे पर अंग्रेजी है। इसके बाद हिंदी का स्थान आता है। इसके साथ ही विश्व आर्थिक मंच ने भी माना था कि विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में हिंदी का स्थान है। करीब 60 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं, इनमें से 26 करोड़ लोगों की यह मातृभाषा है।

इन देशों में विश्र्व हिंदी सम्मेलन

1975 के बाद से भारत के साथ ही मॉरिशस, त्रिनिडाड और टोबैगो, अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई देशों में विश्र्व हिंदी सम्मेलन मनाया गया है।

यहां बोली जाती है हिंदी

भारत के साथ ही नेपाल, अमेरिका, मॉरिशस, फिजी, द.अफ्रीका, सूरीनाम, युगांडा सहित दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहां पर हिंदी बोली जाती है। नेपाल में करीब 80 लाख हिंदी बोलने वाले रहते हैं। वहीं अमेरिका में हिंदी बोलने वालों की संख्या करीब साढ़े छह लाख है।

संस्कृति की संवाहक

किसी भी संस्कृति को आगे ले जाने में भाषा का योगदान होता है। भाषा ही वो सेतु है, जिसके जरिए हम किसी संस्कृति को समझ सकते हैं। भारतीय संस्कृति को समझने और जानने से पहले हमें हिंदी को जानना होगा। आध्यात्मिकता को जानने की उत्कंठा लिए विदेशी जब यहां आते हैं तो उन्र्हें हिंदी को जानना ही होता है।

विश्व हिंदी दिवस पर हमें ये विचार करना चाहिए कि एक भाषा के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के भाषाविदों का क्या योगदान रहा। आज हिंदी को साहित्य की भाषा से आगे ले जाकर विज्ञान, तकनीक और प्रौद्योगिकी की भाषा बनाने के उपक्रम को आगे बढ़ाना चाहिए। इस समय दुनिया के 25-30 देशों में संपर्क और संबंध की भाषा के तौर पर हिंदी का व्यवहार होता है, जरूरत इस बात की है कि हिंदी का एक अंतरराष्ट्रीय स्वरूप भी विकसित हो।

पिछले 25-30 वर्षों में हिंदी भाषा को लेकर केवल विमर्श होता रहा, प्रामाणिक कार्य नहीं हो पाया। आज दुनिया को भाषा और सभ्यता के रिश्ते समझ में आने लगे हैं। हमें भी उस हिंदी सभ्यता को लेकर चलने की जरूरत है जिसको गालिब और मीर ने भी हिंदी सभ्यता की दृष्टि माना था। उसी सभ्यता दृष्टि का विकास आवश्यक है। आज पूरी दुनिया में अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन और मंडारिन की भाषिक सभ्यता दिखाई देती है लेकिन हिंदी की नहीं। विश्व हिंदी दिवस पर वैश्विक स्तर पर हिंदी सभ्यता दृष्टि को मजबूत करने करने का प्रयास करना चाहिए। प्रोफेसर रजनीश शुक्ल, कुलपति, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीर्य हिंदी विश्वविद्यालय

विश्व के स्तर पर हिंदी को आगे बढ़ाने का जो कार्य नागपुर में 1975 में शुरू किया गया था वो एक वैश्विक जागरूकता के लिए उठाया गया कदम था। इस वक्त विदेश में हिंदी को आगे बढ़ाने की जो योजनाएं चल रही हैं, उनको एकात्म रूप से बढ़ाने के लिए विश्व हिंदी दिवस एक प्रेरणा का काम करता है। इस अवसर का यही उपयोग है कि संख्या की दृष्टि से नहीं बल्कि भाव और संवेदना की दृष्टि से हिंदी को निरंतरता के साथ दुनियाभर में फैलाया जाए।

इस मौके पर हमें ये भी कोशिश करनी चाहिए कि विदेश में हिंदी को लेकर जो प्रयास सफल हो रहे हैं, उसको देश की जनता को बताना चाहिए। जैसे फिजी में हिंदी राजकाज की भाषा बन चुकी है लेकिन इसके बारे में देश में कम लोगों को पता है। आज हिंदी भारत की भौगोलिक परिधि से बाहर निकलकर अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करवा रही है। इसको और मजबूती देने के लिए राजनयिकों और राजनय केंद्रों में हिंदी को लेकर अधिक प्रयास हों। इस वक्त पूरी दुनिया में 26 हिंदी चेयर चल रहे हैं, इसको बढ़ाने और समृद्ध करने की जरूरत है।

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