भूमिगत जल में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा वर्तमान में देश की एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इसके कारण देश के विभिन्न हिस्सों में 6.6 करोड़ लोग फ्लोरोसिस के शिकार हैं, जिनमें फ्लोरोसिस से ग्रस्त करीब 60 लाख बच्चे भी शामिल हैं। भारतीय शोधकर्ताओं ने फ्लोराइड युक्त जल को पीने योग्य बनाने के लिए एक सामुदायिक संयंत्र विकसित किया है, जो फ्लोराइड ग्रस्त इलाकों में फ्लोराइड को भूमिगत जल से अलग करने में उपयोगी हो सकता है।
बंगाल के दुर्गापुर स्थित केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित किया गया यह सामुदायिक वाटर डिफ्लुरिडेशन संयंत्र है। इसका विकास हानिकारक सूक्ष्मजीवों और फ्लोराइड युक्त जल के शोधन के लिए किया गया है। इस संयंत्र को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है यह नई तकनीक पानी में फ्लोराइड के स्तर को उसकी शुरुआती मात्रा से सात गुना तक कम कर सकती है। इस तरह साफ किए गए पानी का उपयोग सुरक्षित पेयजल के रूप में करके फ्लोराइड के खतरे से बचा जा सकता है।
यह सामुदायिक डिफ्लुरिडेशन संयंत्र बहु-चरण गुरुत्वाकर्षण पर आधारित है। इसमें लगे कार्टिज में रेत एवं बजरी के साथ-साथ वैज्ञानिकों द्वारा संशोधित बहुआयामी उपयोग वाले अन्य प्राकृतिक अवशोषकों का उपयोग किया गया है। एक हजार लीटर की भंडारण क्षमता वाले यह संयत्र एक घंटे में 700 लीटर स्वच्छ पेयजल प्राप्त किया जा सकता है। इस संयंत्र की एक खास बात यह है कि इसके संचालन के लिए बिजली की जरूरत नहीं पड़ती और इसे मार्क-ढ्ढढ्ढ से जोड़ा जा सकता है। इस संयंत्र के संचालन के लिए किसी विशेष कौशल की भी जरूरत नहीं पड़ती है।
इस तरह करता है काम
दूषित जल को हैंड पंप के जरिये एक ओवरहेड टैंक में जमा किया जाता है। एक पाइप की मदद से दूषित जल ड्रम के आकार के शोधन संयंत्र के ऊपरी हिस्से में प्रवाहित किया जाता है। इसमें फव्वारे की तरह एक उपकरण लगाया गया है, जो पानी को समान रूप से वितरित करने में मदद करता है। ड्रम की भीतर अवशोषकों की पांच स्तरीय परतें बिछी रहती हैं, जो फ्लोराइड युक्त जल के शोधन में मदद करती हैं। संयंत्र में विशेष आकार की बजरी, शुद्ध सिलिका, फेराइट से संतृप्त एक्टिवेटिड एल्युमिना, जिंक युक्त एक्टिवेटिड बायो-चारकोल और एक अन्य बजरी की परत बिछाई जाती है।
फ्लोरोसिस रोग का रहता है खतरा
इस संयंत्र की तकनीक को पांच कंपनियों को नॉन एक्सलूसिव आधार पर हस्तांतरित किया गया है। फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा वाले पेयजल अथवा भोजन के सेवन से फ्लोरोसिस रोग होने का खतरा रहता है। विश्र्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार प्रति लीटर पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन भारत के 20 राज्यों के 203 जिले फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा से ग्रस्त हैं।