राजस्थान में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ये विधानसभा चुनाव राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ-साथ बीजेपी के लिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण होने वाले हैं. क्योंकि पिछले 5 सालों में बीजेपी की छवि राज्य में गिरी है. 2013 के बाद से बीजेपी, राजस्थान में एक भी उपचुनाव जीतने में नाकाम रही है. राजस्थान की बदलते सियासी रुख को देखते हुए वसुंधरा राजे को खुद ही जनसंवाद करने उतरना पड़ा है.
वे भी जानती हैं कि ये चुनाव उनके लिए करो या मारो की स्थिति है, जिसके चलते वसुंधरा अपनी छवि को बेहतर बनाने की कवायद में जुटी हैं. वसुंधरा राजे इन दिनों विकास परियोजनाओं की घोषणा करने के साथ-साथ काम न करने वाले अधिकारियों को निलंबित कर रही हैं. राजस्थान में वसुंधरा के सत्ता सँभालने के बाद से ही भाजपा का ग्राफ लगातार निचे गिरा है. वहीं स्थानीय जनता भी वसुंधरा सरकार के खिलाफ सड़क पर प्रदर्शन कर रही है.
खुद भाजपा के ही कार्यकर्ता, वसुंधरा से नाराज़ होकर पार्टी से बगावत कर रहे हैं, छह बार के विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने बीजेपी को छोड़कर ‘भारत वाहिनी पार्टी’ नाम से अलग दल बना लिया. प्रदेश की सभी 200 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान भी कर चुके हैं. इन सबसे निपटने के लिए वसुंधरा राजे ने जन संवाद का सहारा लिया है. राजस्थान के 33 जिलों में से अभी तक वसुंधरा 16 से अधिक जिलों में 50 से अधिक बैठकें कर चुकी हैं. वे लोगों की शिकायतों को सुनकर, तुरंत अधिकारीयों के खिलाफ कार्यवाही कर उन्हें निलंबित भी कर रही है. अब देखना ये है कि ये जनसंवाद, राजस्थान में वसुंधरा और बीजेपी का कितना भला कर पाता है.