इंग्लैण्ड से स्वदेश लौटने पर साहित्यकार पं.हरि ओम शर्मा ‘हरि’ का हुआ भव्य स्वागत
लखनऊ : प्रख्यात साहित्यकार पं. हरि ओम शर्मा ‘हरि’ एवं उनकी पत्नी मायादेवी शर्मा, शिक्षाविद्, इंग्लैण्ड में भारतीय संस्कृति व सभ्यता का परचम लहराकर आज स्वदेश लौट आये। स्वदेश वापसी पर पं. शर्मा के ईष्ट-मित्रों व शुभचिन्तकों ने अमौसी एअरपोर्ट पर उनका भव्य स्वागत-अभिनंदन किया एवं विदेश में देश का गौरव बढ़कर लौटने पर हार्दिक शुभकामनाएं दी। इस अवसर पर श्री शर्मा ने कहा कि इंग्लैण्ड की इस यात्रा के दौरान मुझे ब्रिस्टल शहर एवं ब्रिस्टल विश्वविद्यालय, लिवरपूल शहर एवं लिवरपूल विश्वविद्यालय, लंदन सिटी, स्टैनफोर्ड शहर, बर्मिंघम शहर, ब्रैण्डन हिल, क्लिफटन टाउन, बाथ टाउन, स्वामीनाथन मंदिर आदि विभिन्न स्थानों पर जाने का अवसर मिला एवं विभिन्न सामाजिक संस्थानों, शैक्षिक संस्थानों, हिन्दीभाषी स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों एवं अन्य ख्यातिप्राप्त हस्तियों से मुलाकात के दौरान भारतीय संस्कृति, संस्कार व सामाजिक सरोकारों पर गहन विचार-विमर्श का अवसर मिला। श्री शर्मा ने आगे बताया कि इस यात्रा की खास बात रही कि मुझे भारत के अलावा पाकिस्तान व बांग्लादेश के लोगों से भी मिलने का अवसर मिला। तीनों देशों के लोग अपने को हिन्दी भाषी मानते हैं और स्वयं को देशी कहने में गर्व महसूस करते हैं। इसके साथ ही, तीनों देशों के लोग आपस में प्यार व स्नेह से रहते हैं, साथ ही एक-दूसरे की मदद करते हैं।
इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध स्वामीनाथम हिन्दू मंदिर के मैनेजर हेमल गुजराती से हुई मुलाकात कर जिक्र करते हुए श्री शर्मा ने कहा कि मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि विदेशों में भी भारतीय संस्कृति व सभ्यता दिनोंदिन लोकप्रिय हो रही है, खासकर युवा पीढ़ी इसे जानने व समझने को उत्साहित नजर आती है। इस अवसर पर श्री शर्मा ने स्वामीनाथम मंदिर के मैनेजर श्री हेमल गुजराती को अपनी दो पुस्तकें ‘जड़, जमीन, जहान, एवं ‘गिव विंग्स टु योर चाइल्ड’ भी भेंट की। यह पुस्तकें मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं एवं अन्य नागरिकों को भारतीय संस्कृति व सभ्यता से रूबरू कराने में महत्वपूर्ण साबित होंगी। इस विशाल मन्दिर में आरती के समय दिन के 12 बजे प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में हिन्दू व सिख भाई भाग लेते हैं, कीर्तन भजन करते हैं और एक-दूसरे से मिलते हैं।
पं. हरि ओम शर्मा ‘हरि’ के निजी सचिव राजेन्द्र चौरसिया ने बताया कि पं. शर्मा का मानना है कि विभिन्न संस्कृतियों का आदान-प्रदान ही विश्व एकता एवं विश्व शान्ति की आधारशिला है। उनकी यह यात्रा विदेश की धरती पर भारतीय संस्कृति व सभ्यता का अलख जगाने में अत्यन्त महत्वपूर्ण साबित हुई है, जो लखनऊ के लिए गर्व की बात है। श्री चौरसिया ने बताया कि पं. शर्मा जी अभी तक 17 पुस्तकें लिख चुके हैं और उनकी लेखनी सतत् गतिमान है। पं. शर्मा की 18वीं पुस्तक शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है। आपकी पुस्तकों को सिर्फ देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी बहुत सराहा गया है। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम व डा. प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, मॉरीशस के तत्कालीन राष्ट्रपति अनिरुद्ध जुगनाथ एवं नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ समेत देश-विदेश की अनेकों हस्तियों ने पं. शर्मा के लेखन का सराहा है।