आखिर कैसे सफलता मिले हिन्दी पट्टी को ?? आखिर लोग कोचिंग की भूमिका पर इतना सवाल क्यूँ उठा रहे हैं? अगर कोई कोचिंग 1000 लोगों को कोच कर रही हो और उसमें वह 10लोगों का चयन कराने का दावा करे तो उसे यह भी तो बताना चाहिये कि क्या कारण था कि वह अन्य 990 लोगों का चयन नहीं करा सकी !……या फिर उनको मान लेना चाहिये कि वास्तव में चयन एक व्यक्तिगत उपलब्धि है , कोचिंग कोई गारंटी नहीं महज एक ज़रिया है …
कोचिंग वही सबसे अच्छी है जो समय पर कोर्स पूरा कर सके , उसके पास एक बेहतर कंटेंट टीम हो , अच्छे मूल्याँकन में सिद्धहस्त परीक्षक हों , जो भी वादा करे उसे पूरा करे, वह अच्छे शिक्षकों से युक्त हो … उसके पास प्री , मेंस और इंटरव्यू का संतुलित और प्रभावी प्रशिक्षण तरीका हो ….इस दृष्टि से हिन्दी माध्यम में अंग्रेजी माध्यम से कम सक्षम संस्थायें नहीं हैं …अंग्रेजी माध्यम के अधिकांश अच्छे प्रतियोगी बाजीराम में पढ़ते हैं तो जाहिर है वहीं से परिणाम भी अधिक होंगे ..पर क्या ये परिणाम 10 प्रतिशत भी होते हैं ….नहीं ….यानी यहाँ भी 90 प्रतिशत लोग परिणाम नहीं दे पाते ……फिर कोचिंग को निर्णायक क्यूँ माना जा रहा है ?
…. चूँकि हमें एक समयबद्ध मार्ग दर्शन की ज़रूरत होती है , चूँकि हमें स्कूल -कालेज की पढ़ाई के बाद अपने सपने पूरे करने के लिये अनुभवी मार्ग दर्शकों की ज़रूरत पड़ती है इसलिये हम कोचिंग करते हैं ….पर सैकड़ों दुकानों में विश्वसनीय कौन है , इसका मूल्यांकन विग्यापनों के अतिशयोक्ति दावे नहीं कर सकते , इसके लिये सबसे पहले यह देखना होता है हमें ज़रूरत क्या है ? और इस ज़रूरत को कौन संस्था पूरा कर सकती है …. उसकी प्रामाणिकता उसे चलाने वालों की योग्यता और अनुभव पर टिकी होनी चाहिये …न कि परिणामों की संख्या के सन्दिग्ध घटाटोप द्वारा …upsc में सीट 1000 के आस -पास होती हैं पर कोचिंग्स के सभी दावों को मिला दिया जाये तो हर साल 10 हज़ार ias तो ज़रूर निकलने चाहिये …चलिये एकाध मामलों में आदमी कई कोचिंग कर सकता है , पर दावे निश्चय ही संदिग्ध ही होते हैं … ऐसे में कोचिंग चाहने वालों को काफी सावधानी बरतनी होगी …ताकि आप किसी घटिया कोचिंग के आसमानी दावों के शिकार न हो जायें … कोचिंग आप सीखने के लिये करें , नियमित होने के लिये करें , अपने को टेस्ट करने के लिये करें , अच्छी सरकिल की संभावना के लिये करें , अच्छे -अपडेट नोट्स के लिये करें …..पर कभी खुश-फहमी में न रहें कि कोचिंग करने मात्र से ही आप ias बन जायेंगे क्योंकि देश भर में 1 लाख लोग सूचना के स्तर पर इस योग्य हैं कि ias बन सकते हैं …
आमतौर पर ये सूचना इन्हें कोचिंग ने ही प्रदान की है …पर संघर्ष तो हज़ार में आने का है ..यह तभी हो सकता है जब आप विचार और भाषा के स्तर पर अपने को मांज सकें …इसमें कोचिंग बहुत कम मदद इसलिये कर पायेगी क्योंकि यह लम्बी प्रक्रिया है …भाषा व विचार दशकों में बनते हैं .. स्कूलिंग की इसमें बहुत बड़ी भूमिका होती है , अच्छी संगति और ग्रुप भी प्रभाव डालती है …हाँ हिन्दी के संकट को देखते हुये कोचिंग सेमिनार , क्विज , डीबेट , वीक एंड एकेडमिया जैसे उपायों को आजमा कर विचार एवं भाषा निर्माण को गति दे सकती हैं , वे दो तरफा संवाद की क्षमता वाले शिक्षकों को प्रमोट कर सकती हैं , टेस्ट सीरीज का स्तर बढ़ा सकती हैं …पर वे ias तब तक नहीं बना सकती हैं जब तक आप खुद न चाहें …..आप के चाहने से तात्पर्य यह है कि आप यह समझने लगें कि आपको upsc के परीक्षकों के स्तर तक विचार एवं भाषा का स्तर ले जाना ही होगा …इसके लिये कुंजी-गाइड और नोट्स ही पर्याप्त नहीं होंगे …
आपको भारत के बारे में , आर्थिकी के बारे में , नीतियों के बारे में , राजनीति और समाज के बारे में , संस्कृतियों के बारे में , विग्यान एवं पर्यावरण के बारे में वह पढ़ना होगा जो परीक्षक और पेपर सेटर खुद पढ़ते हैं …यानी अधिकारी और समर्थ लेखकों के समूह को पढ़कर आपको अपने स्तर को उठाकर upsc के स्तर का करना होगा , इसके लिये अच्छे खासे अभ्यास और धैर्य की ज़रूरत होगी साथ में ज़रूरत होगी उचित मार्ग दर्शन एवं दिशा की …हिन्दी पट्टी को वह गैप पाटने का काम करना ही होगा जो खराब शिक्षा व्यवस्था ने पैरों में बेड़ियों की तरह उनमें बांध दी हैं ..उसे कुयें का मेढ़क बनना छोड़ ग्लोबल बनना होगा , द्विभाषी बनना होगा … क्षेत्रीय pcs , यूनिवर्सिटी के पैटर्न को यहाँ आजमाने से बाज आना होगा , मौलिक और नवोन्वेषी विचार लाने होंगे …और यह असंभव नहीं है , जब वे इसे कर सकते हैं जो सेलेक्ट हो रहे हैं तो आप भी कर सकते हैं बशर्ते आप ज़ड़ता छोड़ upsc की वास्तविक माँग पर फोकस करें ……….. खुद पर विश्वास रखें , व्यवस्था पर विश्वास रखें …