एक समय था जब गोवा पुर्तगाल का हिस्सा हुआ करता था। भारतीय सशस्त्र सेना ने 19 दिसंबर 1961 में गोवा मुक्ति संग्राम, गोवा मुक्ति आंदोलन या गोवा मुक्ति संघर्ष को अंजाम दिया, इसके परिणाम स्वरूप गोवा को पुर्तगाल के आधिपत्य से मुक्त कराकर भारत में मिला लिया गया। इसमें वायुसेना, जलसेना एवं थलसेना तीनों ने भाग लिया। यह संघर्ष 36 घंटे से अधिक समय तक चला। इसको ‘आपरेशन विजय’ का कूटनाम दिया गया था। देश की आजादी के बाद गोवा को भारत में विलय करवाने के लिए भारत ने बड़ी सैन्य कार्रवाई की थी, जिसका नतीजा आज हमारे सामने है।
गोवा को मिला राज्य का दर्जा
30 मई 1987 को गोवा को राज्य का दर्जा दे दिया गया जबकि दमन और दीव केंद्रशासित प्रदेश बने रहे। ‘गोवा मुक्ति दिवस’ प्रति वर्ष ’19 दिसंबर’ को मनाया जाता है। आपको जानकर हैरत होगी कि पुर्तगाल के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा का ताल्लुक भारत के इसी गोवा से है। कोस्टा गोवा मूल के एक कवि ओरलैंडो के बेटे हैं। औपनिवेशिक सामंतवादी व्यवस्था पर ओरलैंडो की किताब ‘ओ सिंग्नो दा इरा’आज भी गोवा की क्लासिक साहित्यक कृतियों में गिनी जाती है। कोस्टा को लिस्बन का गांधी भी कहा कहा जाता है। आज भी गोवा की मार्गाओ रुआ अबादे फरिया रोड पर उनकी बहन अन्ना केरिना रहती हैं और उनका पुराना घर मौजूद है।
गोवा का इतिहास
गोवा का प्रथम वरदान हिंदू धर्म में रामायण काल में मिलता है। पौराणिक लेखों के अनुसार सरस्वती नदी के सूख जाने के कारण उसके किनारे बसे हुए ब्राम्हणों के पुनर्वास के लिए परशुराम ने समंदर में शर संधान किया। ऋषि का सम्मान करते हुए समंदर ने उस स्थान को अपने क्षेत्र से मुक्त कर दिया। ये पूरा स्थान कोंकण कहलाया और इसका दक्षिण भाग गोपपूरी कहलाया जो वर्तमान में गोवा है। पुर्तगाल में एक कहावत है कि जिसने गोवा देख लिया उसे लिस्बन देखने की जरूरत नहीं है।
भारत आने वाले पहले और छोड़ने वाले यूरोपीय शासक
आपको बता दें कि पुर्तगाली भारत आने वाले पहले (1510) और यहां उपनिवेश छोड़ने वाले आखिरी (1961) यूरोपीय शासक थे। गोवा में उनका 451 साल तक शासन रहा जो अंग्रेजों से काफी अलग था। पुर्तगाल ने गोवा को ‘वाइस किंगडम’ का दर्जा दिया था और यहां के नागरिकों को ठीक वैसे ही अधिकार हासिल थे जैसे पुर्तगाल में वहां के निवासियों को मिलते हैं। उच्च तबके के हिंदू और ईसाइयों के साथ-साथ दूसरे धनी वर्ग के लोगों को कुछ विशेषाधिकार भी थे। जो लोग संपत्ति कर देते थे उन्हें 19वीं शताब्दी के मध्य में यह अधिकार भी मिल गया था कि वे पुर्तगाली संसद में गोवा का प्रतिनिधि चुनने के लिए मत डाल सकें।
हर लिहाज से गोवा बेहद अहम
भारत के लिए गोवा बेहद अहम था। अपने छोटे आकार के बावजूद यह बड़ा ट्रेड सेंटर था और मर्चेंट्स, ट्रेडर्स को आकर्षत करता था। प्राइम लोकेशन की वजह थे गोवा की तरफ मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश भी आकर्षत हुए थे। गौरतलब है कि 1350 ई. पू में गोवा बाहमानी सल्तनत के अधीन चला गया लेकिन 1370 में विजय नगर सम्राज्य ने इस पर फिर से शासन जमा लिया। विजय नगर साम्राज्य ने एक सदी तक इस पर तब तक आधिपत्य जमाए रखा जब तक कि 1469 में बाहमानी सल्तनत फिर से इस पर कब्जा नहीं जमा लिया।
राम मनोहर लोहिया और गोवा का मुक्ति संग्राम
गोवा के लोकगीतों में डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम मिलता है। एक गीत काफी गाया जाता है, ‘‘पहिली माझी ओवी, पहिले माझी फूल, भक्ती ने अर्पिन लोहिया ना।’’ कवि बोरकर की पंक्ति से सभी परिचित हैं ‘धन्य लोहिया, धन्य भूमि यह धन्य उसके पुत्र’। गोवा 1498 में पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा के आने के बाद पुर्तगालियों की दृष्टि में आया। 17वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध तक यहां पुर्तगालियों का कब्जा हो गया था।
गोवा रहा गुलाम
भारत के आजाद होने के बाद भी गोवा गुलाम रहा और 19 दिसम्बर 1961 को मुक्त हुआ। गोवा की आजादी का सिंहनाद डॉ. लोहिया ने किया था। वहां के लोकगीतों में डॉ. लोहिया का वर्णन पौराणिक नायकों की तरह होता है। यदि गोवा की आजादी का श्रेय किसी एक व्यक्ति को देना हो तो वे डॉ. राममनोहर लोहिया हैं, जिन्होंने पहली बार गोवा के आजादी के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बनाया और अस्वस्थता के बावजूद गोवा मुक्ति संग्राम की अगुवाई में गिरफ्तारी दी।
सविनय अवज्ञा प्रारंभ
15 जून 1946 को पंजिम में डॉ. लोहिया की सभा हुई जिसमें तय हुआ 18 जून से सविनय अवज्ञा प्रारम्भ होगा। पुलिस ने टैक्सी वालों को मना कर दिया था। डॉ. लोहिया मडगांव सभा स्थल घोड़ागाड़ी से पहुंचे। तेज बारिश, 20 हजार की जनता और मशीनगन लिए हुए पुर्तगाली फौज सामने खड़ी थी। गगनचुम्बी नारों के बीच डॉ. लोहिया के ऊपर प्रशासक मिराण्डा ने पिस्तौल तान दी। लेकिन लोहिया के आत्मबल और आभामण्डल के आगे उसे झुकना पड़ा।
500 साल में पहली बार हुआ आजादी का सिंहनाद
पांच सौ वर्ष के इतिहास में गोवा में पहली बार आजादी का सिंहनाद हुआ। लोहिया गिरफ्तार कर लिए गए। पूरा गोवा युद्ध-स्थल बन गया। पंजिम थाने पर जनता ने धावा बोलकर लोहिया को छुड़ाने का प्रयास किया। एक छोटी लड़की को जयहिन्द कहने पर पुलिस ने बेरहमी से पीटा। 21 जून को गवर्नर का आदेश जारी हुआ, जिसमें आम-सभा और भाषण के लिए सरकारी आदेश लेने की जरूरत नहीं थी। लोहिया चैक (चौराहे) पर झण्डा फहराया गया। गोवा को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा पुर्तगाल को तीन माह का नोटिस देकर लोहिया लौट आए।
ऐंक्लेव्स पर कब्जा
1954 में, नि:शस्त्र भारतीयों ने गुजरात और महाराष्ट्र के बीच स्थित दादर और नागर हवेली के ऐंक्लेव्स पर कब्जा कर लिया। पुर्तगाल ने इसकी शिकायत हेग में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में की। 1960 में फैसला आया कि कब्जे वाले क्षेत्र पर पुर्तगाल का अधिकार है। कोर्ट ने साथ में ये भी फैसला दिया कि भारत के पास अपने क्षेत्र में पुर्तगाली पहुंच वाले ऐंक्लेव्स पर उसके दखल को न मानने का पूरा अधिकार भी है।
पुर्तगाल की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं
बार-बार बातचीत की पेशकश ठुकराने के बाद 1 सितंबर 1955 को, गोवा में भारतीय कॉन्सुलेट को बंद कर दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि सरकार गोवा में पुर्तगाल की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं करेगी। भारत ने पुर्तगाल को बाहर करने के लिए गोवा, दमान और दीव के बीच में ब्लॉकेड कर दिया। इसी बीच, पुर्तगाल ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की पूरी कोशिश की। लेकिन, क्योंकि यथास्थिति बरकरार रखी गई थी।
भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव पर चढ़ाई कर दी
18 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव पर चढ़ाई कर ली। इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। पुर्तगाली सेना को यह आदेश दिया गया कि या तो वह दुश्मन को शिकस्त दे या फिर मौत को गले लगाए। भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने गोवा के बॉर्डर में प्रवेश किया। 36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक जमीनी, समुद्री और हवाई हमले हुए। लेकिन भारत ने अंततः पुर्तगाल के अधीन रहे इस क्षेत्र को अपनी सीमा में मिला लिया। पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसालो इ सिल्वा ने भारतीय सेना प्रमुख पीएन थापर के सामने सरेंडर किया।