बिजनौर में सीजेएम कोर्ट में हुए हत्याकांड को लेकर उठाए सवाल
लखनऊ : विधानसभा के चतुर्थ सत्र के दूसरे दिन बुधवार को विपक्ष के सदस्यों ने कार्यवाही शुरू होते ही हंगामा किया। उन्होंने प्रदेश में कानून व्यवस्था बदहाल होने का आरोप लगाते हुए सरकार पर गम्भीर आरोप लगाये। सपा व कांग्रेस के सदस्यों ने वेल में आकर बिजनौर में सीजेएम कोर्ट रूम में मंगलवार को हुए हत्याकांड को लेकर सरकार पर सवाल खड़े किए और बहस की मांग की। नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश जल रहा है। सरकार पंगु हो गई है। उन्होंने दुष्कर्म की घटनाओं को लेकर भी सरकार को घेरा। इस पर विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने बहस की इजाजत देने से इनकार कर दिया। उन्होंने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि बिना नोटिस दिए यह चर्चा नहीं हो सकती। सदन में उस वक्त न मुख्यमंत्री थे और न ही संसदीय कार्यमन्त्री सुरेश खन्ना उपस्थिति थे। खन्ना की जगह श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है। इसलिए वह बेवजह सदन की कार्यवाही बाधित करने का प्रयास कर रहा है। आरोप-प्रत्यारोप के बीच सपा और कांग्रेस ने सत्र का बहिष्कार कर दिया। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने तीस मिनट के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी।
इससे पहले मंगलवार को भी नागरिकता संशोधन एक्ट सहित लखनऊ के नदवा कालेज व अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पुलिस लाठीचार्ज को लेकर विपक्ष के सदस्यों ने दोनों सदनों में नारेबाजी की और पोस्टर लहराते हुए अपना विरोध दर्ज कराया। सपा विधायकों ने विधानभवन परिसर में चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा के सामने धरना भी दिया। बाद में भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर द्वारा गाजियाबाद पुलिस पर अपने उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद एक बार फिर हंगामा हुआ। यहां तक कि विपक्ष के सदस्यों के साथ भाजपा के 100 से अधिक विधायक सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए। सरकार के स्तर पर नाराज विधायकों के मान मनौव्वल का प्रयास काफी देर चलता रहा। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. हृदय नारायण दीक्षित से आश्वासन मिलने के बाद विधायकों ने शाम को अपना धरना समाप्त किया।
इसके बाद से ही विपक्ष के तेवर देख बुधवार को हंगामा होने के आसार लग रहे थे और आज सदन की कार्यवाही शुरू होने पर ऐसा नजर भी आया। कांग्रेस के विधान परिषद सदस्य दीपक सिंह बुधवार को बांह पर काली पट्टी बांधकर विधान परिषद पहुंचे। इस पर बिजनौर हत्याकांड और महिला सुरक्षा की पर्चियां लगी थीं। उन्होंने कहा कि सावरकर को माफीनामे के आधार रिहा करने के बाद उनका अंतिम जीवनकाल देश के साथ था अथवा अंग्रेजों के साथ, इस पर चर्चा होनी चाहिए।