सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की जुवेनाइल जस्टिस कमेटी को नाबालिगों को गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखने के सुरक्षा बलों पर लगाए गए आरोपों में कोई सच्चाई नहीं मिली है। पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 हटने के बाद बाल अधिकार कार्यकर्ता इनाक्षी गांगुली और शांता सिन्हा ने एक याचिका दाखिल कर जम्मू-कश्मीर में नाबालिगों को गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखे जाने का आरोप लगाया था।
याचिका में प्रमुख अमेरिकी अखबारों में छपी खबरों का हवाला भी दिया गया था। शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने सवाल किया, ‘हमें हाई कोर्ट के हमारे चार जजों की तथ्य परक रिपोर्ट पर भरोसा करना चाहिए या वाशिंगटन के अखबार में छपी कुछ खबरों पर?’ हाई कोर्ट की रिपोर्ट पर संतोष व्यक्त करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि समिति में शामिल हाई कोर्ट के चारों जजों ने सभी जेलों का दौरा किया था और संबंधित लोगों से बात की थी। उन्हें कोई भी नाबालिग गैरकानूनी रूप से हिरासत में नहीं मिला।
गांगुली के वकील हुजेफा अहमदी ने जब हाई कोर्ट रिपोर्ट की जांच की दलील दी तो जस्टिस रमना ने कहा, ‘हमने बड़े ध्यान से रिपोर्ट देखी है, उसमें नाबालिगों की गैरकानूनी हिरासत जैसी कोई चीज नहीं है.. हम मामले को लंबित नहीं रख सकते और हम जजों की ओर से दाखिल रिपोर्ट पर पुनर्विचार की अनुमति भी प्रदान नहीं कर सकते।’ जस्टिस गवई ने कहा कि आपने रिपोर्ट की मांग की थी और हाई कोर्ट के चार जजों ने अदालत के समक्ष सही तथ्य रख दिए हैं।
अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर व्यक्तिगत शिकायतें हो तो वह उन्हें रिपोर्ट दे देगा और जो पीडि़त हैं वे उचित प्राधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। जस्टिस रमना ने जोर देकर कहा कि इन प्रक्रियाओं में न्यायपालिका की छवि को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए।