महिलाओं की सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों को निर्भया फंड आवंटित किया था जिसमें से 2,264 करोड़ रुपयों का इस्तेमाल नहीं हुआ है। यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए आवंटित 3,600 करोड़ रुपये का 63 प्रतिशत है। सरकार द्वारा आवंटित फंड के 89 प्रतिशत का उपयोग नहीं हुआ है। किसी भी राज्य ने 50 से अधिक फंड के उपयोग की सूचना नहीं दी है।
उत्तराखंड और मिजोरम सूची में सबसे ऊपर
उत्तराखंड और मिजोरम सूची में सबसे ऊपर हैं जिन्होंने 50 प्रतिशत फंड का उपयोग किया है। इसके बाद छत्तीसगढ़ ने 43, नगालैंड ने 39 और हरियाणा ने 32 प्रतिशत फंड का उपयोग किया है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 18 ने 15 प्रतिशत से भी कम फंड का इस्तेमाल किया है।
धन आवंटित करने वाले मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में केवल पांच प्रतिशत फंड का उपयोग किया गया है। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाउंडेशन ने संसद के साथ जो आंकड़े साझा किए हैं उसके अनुसार राज्यों द्वारा दिए गए विवरण दिखाते हैं कि केवल 11 प्रतिशत फंड यानी 252 करोड़ रुपयों का इस्तेमाल हुआ है।
इसे लेकर लोकसभा में महिला एंव बाल विकास मंत्री ने 29 नवंबर को जवाब दिया था। शोधकर्ताओं ने 50 पन्नों की रिपोर्ट के निरीक्षण में पाया है कि सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के फंड का 25, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के फंड का 19, गृह मंत्रालय के फंड का नौ प्रतिशत और सामाजिक न्यायिक अधिकारिता मंत्रालय के फंड का बिलकुल इस्तेमाल नहीं किया गया।
दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को फिजियोथेरेपी की छात्रा के साथ चलती बस में हुए सामूहिक दुष्कर्म के बाद निर्भया फंड बनाया गया था। महाराष्ट्र ने इस फंड का बिलकुल भी उपयोग नहीं किया। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2017 के आंकड़ों को लेकर जारी ‘भारत में अपराध’ रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में महाराष्ट्र का नंबर दूसरा है। वहीं बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध की संखया में वह तीसरे नंबर पर है।