माखी कांड के बाद दुष्कर्म की घटनाओं ने उन्नाव की साख पर ऐसा बदनुमा दाग लगाया कि वह प्रदेश में दुष्कर्म की राजधानी बन गया। बीते 11 माह में अब तक 86 दुष्कर्म के मामले दर्ज हो चुके हैं। चौंकाने वाला आंकड़ा यह भी है कि जनवरी से नवंबर तक 11 माह में 185 छेड़छाड़ और दुष्कर्म की कोशिश के मामले भी सामने आए। ऐसे में सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े हैं। असल में उन्नाव सियासत की दखलअंदाजी से पुलिस को बैकफुट पर रहकर राजनीतिक आकाओं की जी-हुजूरी करनी पड़ रही है।
लखनऊ से 60 किमी और कानपुर से 25 किमी की दूरी पर बसे करीब 31 लाख की आबादी वाला उन्नाव इस समय पूरे देश में चर्चा का विषय है। ताबड़तोड़ दुष्कर्म की घटनाओं ने सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिला पूरे देश में उस समय सुर्खियों में आया जब भाजपा के निष्कासित विधायक कुलदीप ङ्क्षसह सेंगर पर दुष्कर्म का आरोप लगा। इसके बाद नवंबर में पुरवा में एक महिला के साथ दुष्कर्म हुआ जिस पर खासी चर्चा हुई। अब दुष्कर्म पीडि़ता को ङ्क्षजदा जलाने के प्रयास की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया।
असोहा, अजगैन, बांगरमऊ और माखी में ज्यादा मामले
सबसे अधिक दुष्कर्म के मामले असोहा, अजगैन, बांगरमऊ और माखी क्षेत्र के हैं। हाल यह कि आपराधिक मामलों के आरोपित सियासी कृपा से खुले में घूम रहे हैं। जो पकड़े गए उनमें अधिकतर लचर पैरवी के कारण जमानत पर हैं।
इतने बड़े नाम फिर भी बदनाम
राजनीतिक पटल पर उन्नाव से विधानसभा अध्यक्ष ह्दय नारायण दीक्षित, कानून मंत्री बृजेश पाठक और सांसद साक्षी महाराज जैसे बड़े नाम जुड़े हैं लेकिन दुष्कर्म की वारदातें इस उपलब्धि को दरकिनार कर उन्नाव को बदनाम कर रही हैं। जानकारों का कहना है कि पुलिस-राजनीतिज्ञों की जुगलबंदी व्यवस्था पर हावी है। अजगैन के राघवराम शुक्ला का कहना है कि पुलिस पूरी तरह से राजनीतिज्ञों की पिछलग्गू बन गई है।
राजनीतिज्ञ लंबे समय तक टिके रहने के लिए अपराधियों को प्रत्यक्ष-परोक्ष संरक्षण देते हैं। एक वकील ने कहा कि हाल में ट्रांसगंगा सिटी में मुआवजे की मांग को लेकर किसानों के साथ बर्बरता पर राजनीतिक हलके में खामोशी छाई रही। कुलदीप सेंगर पर मुकदमा तब दर्ज हुआ जब पीडि़ता ने सीएं आवास पर आत्मदाह करने का प्रयास किया।