भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सर्वाधिक चिंता की बात विकास की रफ्तार का सुस्त पड़ना है। भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी विकास दर का अनुमान 6.1 फीसद से घटाकर 5 फीसद कर दिया है। मौद्रिक नीति समिति का रेपो रेट में बदलाव नहीं करना अर्थ विशेषज्ञों के गले नहीं उतर रहा है। खुदरा क्षेत्र में छाई मंदी से निपटने और कीमतों को बनाए रखने के साथ अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए आरबीआइ के तरकश में क्या है?
पेश है एक नजर
लगातार पांच बार बदलाव के बाद आरबीआइ ने रेपो रेट में कोई परिवर्तन नहीं किया है। आरबीआइ की मौद्रिक नीति समिति के सभी छह सदस्य सर्वसम्मति से रेपो रेट में कमी लाने के खिलाफ रहे। फिलहाल रेपो रेट 5.15 फीसद और रिवर्स रेपो रेट 4.90 है।
क्यों नहीं बदली रेपो रेट
आरबीआइ की प्राथमिक कोशिश में महंगाई को रोकना है। दूसरी वजह आरबीआइ अभी तक रेपो रेट में 135 आधार अंकों की कमी कर चुका है। हालांकि उपभोक्ता के पास तक 44 आधार अंकों का ही लाभ मिल सका है। आरबीआइ गवर्नर शशिकांत दास का कहना है कि मार्केट में फिलहाल अतिरिक्त नकदी है। इसके अतिरिक्त आरबीआइ को उम्मीद है कि आने वाला केंद्रीय बजट विकास को रफ्तार देने के लिए वित्तीय प्रयास करेगा।
फैसले का प्रभाव
रेपो रेट में बदलाव नहीं होना सावधि जमा में निवेश करने वालों के लिए राहत की खबर है। इससे पहले रेपो रेट में बदलाव के कारण जमा राशि पर मिलने वाले ब्याज में लगातार कमी देखी जा रही थी। वहीं नए ऋण लेने वाले लोगों को इससे निराशा हुई है। रेपो रेट घटती तो ऋण दरों में कमी हो सकती थी और घर, कार जैसी चीजें खरीदने का सपना साकार हो सकता था।
भविष्य की राह
भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी से गुजर रही है और उपभोक्ता मांग घट रही है। जब तक उपभोक्ता मांग नहीं बढ़ती तब तक अर्थव्यवस्था का इस भंवर से निकलना मुश्किल होगा। महंगाई चिंता की बात तो है लेकिन यह स्थायी नहीं है। आरबीआइ को रेपो रेट में जितनी कमी करनी थी वो कर चुकी
है। अब वह उसके प्रभावों की प्रतीक्षा में है।
सकारात्मक पहलू
- मार्च 2019 के बाद विदेशी मुद्रा भंडार 38.8 अरब डॉलर
- बढ़कर अब 451.7 अरब डॉलर पहुंचा
- रबी की बुवाई पिछले साल के मुकाबले महज 0.5 फीसद कम
- पिछले साल के 61 फीसद के मुकाबले देश के
- प्रमुख जलाशय अब तक 86 फीसद लबालब
- शुद्ध विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में बढ़ोतरी
नकारात्मक पहलू
- जीडीपी विकास दर गिरकर 4.5 फीसद
- अक्टूबर में सेवा क्षेत्र में गिरावट
- निर्यात में गिरावट जारी
- जीएसटी संग्रह लक्ष्य से दूर