भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों का निपटारा अब दो साल के अंदर हो सकेगा। वहीं रिश्वत देने के दोषियों को अधिकतम सात साल की सजा का भी प्रावधान किया गया है। यह व्यवस्था नए भ्रष्टाचार निवारण संशोधन विधेयक-2018 में की गई है। लोकसभा ने मंगलवार को इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया। राज्यसभा में यह पिछले सप्ताह ही पारित हो चुका था। विधेयक में 1988 के मूल कानून को संशोधित करने का प्रावधान है।
विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि वर्तमान विधेयक में इस बात का ध्यान रखा गया है कि ईमानदार अधिकारियों के कोई भी अच्छे प्रयास बाधित नहीं हों। बता दें कि यह संशोधन विधेयक स्थायी समिति के साथ-साथ प्रवर समिति में भी भेजा गया था। समीक्षा के लिए इसे विधि आयोग के पास भी भेजा गया था।
चर्चा के दौरान कई सदस्यों द्वारा लोकपाल की नियुक्ति के मुद्दे को उठाने पर जितेंद्र सिंह ने कहा कि देश में अभी तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हुई है। इस संबंध में प्रक्रिया चल रही है। इस विषय पर सर्च कमेटी गठित करने के संबंध में 19 जुलाई को बैठक हुई। यह सही है कि लोकपाल की नियुक्ति में विलंब हुआ है, लेकिन इस देरी का कारण कांग्रेस है। सदन में विपक्ष के नेता के लिए जरूरी संख्या में सीटें उसके पास नहीं हैं।
खास बातें
1-सेवानिवृत्त सहित सभी सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ अभियोजन चलाने से पहले सीबीआइ जैसी किसी जांच एजेंसी की अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
2-सेवानिवृत्त होने के बाद कर्मचारी के पद पर रहने के दौरान हुए निर्णय के संबंध में बिना पूर्व अनुमति के पुलिस कोई जांच या तहकीकात नहीं कर सकती है।
3-अपने लिए या किसी और के लिए अनुचित लाभ लेते मौके पर पकड़े जाने पर इस तरह की कोई पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं होगी।