मुस्लिमों के दाऊदी बोहरा तबके में बच्चियों के खतना की परंपरा पर रोक लगाने की याचिका का केंद्र सरकार ने समर्थन किया है। सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ याचिका पर 30 जुलाई को सुनवाई करेगी। पीठ में जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल हैं। दिल्ली की अधिवक्ता सुनीता तिवारी की याचिका पर पीठ ने संबंधित पक्षों से जवाब मांगे हैं।
शीर्ष अदालत ने इस विषय पर संबंधित पक्षों से सुनवाई से पूर्व ही उनके जवाब मांगे हैं जिससे आवश्यक समझे जाने पर मामले को संविधान पीठ के समक्ष भेजा जा सके। केंद्र सरकार की ओर से अदालत में पेश होकर महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने याचिकाकर्ता की मांग का समर्थन किया। जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह इस मामले में सामाजिक विद्वानों और डॉक्टरों का भी पक्ष जानने की राय दे रहे हैं।
एक मुस्लिम समूह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा कि मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए। मामला एक धर्म की परंपरा से जुड़ा हुआ है। सही तरीके से उसके परीक्षण के बाद ही कोई फैसला होना चाहिए। उन्होंने कहा कि महिलाओं का खतना एक समुदाय विशेष से जुड़ा धार्मिक मामला है, अदालत को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
इससे पहले नौ जुलाई को शीर्ष अदालत ने दाऊदी बोहरा समुदाय की इस परंपरा पर सवाल उठाया था। कहा था कि क्या यह किसी बच्ची की शारीरिक पूर्णता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है? तब महाधिवक्ता वेणुगोपाल ने कहा था इस प्रक्रिया से बच्चियों को शारीरिक और मानसिक रूप से काफी कठिनाई उठानी पड़ती है, इसलिए इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। बताया था कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और 27 अफ्रीकी देशों में इस कुरीति पर रोक लगाई जा चुकी है।