यौन हिंसा के खिलाफ़ एक साथ उठीं कई आवाज़ें

लखनऊ : औरतों को मिले हिंसा से आज़ादी, सुरक्षित हो आधी आबादी…. यही बात लोगों और राज्य तक पहुंचाने के लिए महिला कार्यकर्ता और संघर्षशील महिलाएं (आली) रविवार को एकजुट हुईं। जेंडर आधारित हिंसा के खिलाफ़ अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले 16 दिवसीय अभियान के तहत एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव्स (आली) ने रविवार, 24 नवम्बर को प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले अभियान का इस साल का विषय ‘ऑरेंज द वर्ड: जेनरेशन इक्वैलिटी स्टैंड्स अगेंस्ट रेप’ और वन बिलियन राइज़िंग 2019- राइज़िंग: फ्रॉम अ कैम्पेन, टु वे ऑफ लाइफ है।

कॉन्फ्रेंस का सम्बोधन उत्तर प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा के खिलाफ़ काम कर रहीं महिला कार्यकर्ताओं ने किया। कार्यकर्ता ज़मीनी स्तर पर महिलाओं की न्याय तक पहुंच बनाने और उनके अधिकार सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही हैं। कार्यकर्ताओं ने बताया कि काम करते वक्त उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही व्यक्तिगत अनुभव के साथ राज्य के लिए सिफारिशें भी साझा कीं।

25 नवम्बर को विश्व स्तर पर महिला के विरुद्ध होने वाली हिंसा के खिलाफ़ अभियान चलाया जाता है। इसी क्रम में एनसीआरबी के ताज़ा आंकड़ों को देखकर सवाल ये उठता है कि जब हिंसा ही नहीं खत्म हो रही तो हम इसके आगे महिलाओं की हिस्सेदारी और उनके अधिकारों की बात कैसे कर सकेंगे। कार्यक्रम में आली की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा ने कहा कि ये सारी चीज़ें महिलाओं के लिए न्यूनतम ज़रूरत हैं। भारत की आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग आधी (48.20) है। कानून महिलाओं को बराबरी का हक़ देता है लेकिन सामाजिक व्यवस्था कुछ और ही है। रेनू ने 166 ए (सी) के बारें में बताया कि अगर यौनिक हिंसा के मामलों में महिला की एफआईआर लिखने से मना करती है या देर करती है तो आईपीसी सेक्शन 166 ए (सी) से किस तरह से पुलिस के खिलाफ शिकायत की जा सकती है।

आली की कार्यक्रम संयोजक शुभांगी ने बताया कि वैश्विक स्त्री-पुरुष समानता सूचकांक में इस साल के आंकड़े बताते हैं कि भारत 129 देशों में से 95वें पायदान पर है। इस तरह से लैंगिक समानता सूचकांक की हालिया सूची में भारत घाना, रवांडा और भूटान जैसे देशों से भी पीछे है। उत्तर प्रदेश महिलाओं के खिलाफ़ होने वाली हिंसा में सबसे ऊपर है। हर घंटे महिलाओं के खिलाफ 6 अपराध हो रहे हैं। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में घरेलू हिंसा, यौनिक हिंसा और अपहरण की घटनाएं सबसे ज्यादा संख्या में हैं।

आली ने जनवरी 2018 से अगस्त 2019 के अपने केस से जुड़े आंकड़े साझा किए। समुदाय आधारित केस वर्करों ने इस दौरान यौनिक हिंसा के 76 मामलों में हस्तक्षेप किया। इनमें 41 फीसदी संघर्षशील महिलाएं अनुसूचित जाति से हैं और 53% महिलाएं अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं। आंकड़े ये भी बताते हैं कि यौनिक हिंसा के 41 फीसदी मामलों में महिलाओं को पुलिस की कार्रवाई में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वहीं 54% मामलों में महिलाओं पर उनके परिवार व समुदाय से दबाव बनाया जाता है और आरोपी से धमकियां मिलती हैं।

यूपी में जमीनी स्तर पर काम कर रहीं कार्यकर्ताओं ने चुनौतियां भी बताईं-

1. जौनपुर की संस्था सागर सोसाइटी की ज्योति ने बताया कि हमारे यहां देखा गया कि दलित महिलाओं के मामलों में कई बार समाज का इतना दबाव होता है कि मुश्किल से ही उनके केस पुलिस तक पहुंच पाते हैं। अगर कोई महिला या कार्यकर्ता इसके लिए कोशिश भी करती हैं तो तथाकथित उच्च जाति से जुड़े आरोपी उसे प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

2. कुशीनगर की संस्था सामुदायिक कल्याण एवं विकास संस्थान की नीतू ने कहा कि यौनिक हिंसा के मामलों में पुलिस प्रशासन का रवैया बेहद ढीला रहता है। एफआईआर तक करने को तैयार नहीं होती। पड़ताल में भी हीलाहवाली बरतती है। वहीं सबसे ज़रूरी बात कि यौनिक हिंसा से गुज़री महिलाओं को त्वरित चिकित्सीय राहत नहीं मिल पाती।

3. फतेहपुर की संस्था नेहरू युवा संस्थान टीसी की अनीता ने बताया कि यौनिक हिंसा और महिला मानवाधिकार पर काम करने वाली महिलाओं को कई बार सामाजिक तौर पर धमकियां मिलती हैं। आरोपी अगर तथाकथित सत्ता के करीब है तब तो कार्यकर्ताओं पर दबाव बनाया जाता है।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com