अब तो सरकार भी हाईकोर्ट में यह स्वीकार कर चुकी है कि नदी-नालों की 270 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। इसी के साथ यह सवाल भी खड़ा हो जाता है कि जब यह अतिक्रमण किए जा रहे थे, तब अधिकारी क्यों खामोश रहे। बेशक सरकार ने कोर्ट में जवाब दाखिल कर रहा है कि अतिक्रमण को चिह्नित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है।
हालांकि, याचिकाकर्ता राजपुर वार्ड की पार्षद उर्मिला थापा का आरोप है कि उन्होंने जिन नाले-खालों के जिन अतिक्रमण पर याचिका दायर की थी, वह जस के तस खड़े हैं और अधिकारी कार्रवाई के नाम पर गरीब झुग्गी वालों को परेशान कर रहे हैं। प्रभावशाली लोगों के अतिक्रमण अभी भी महफूज हैं।
यह तो रही ताजा याचिका की बात। इससे पहले मनमोहन लखेड़ा बनाम सरकार में भी सिंचाई नहरों पर कब्जा जमाए बैठे प्रभावशाली लोगों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। कुछ ऐसे ही नदी श्रेणी की भूमि का श्रेणी परिवर्तन करने और नदी श्रेणी की भूमि पर किए गए अतिक्रमणों पर भी अधिकारियों का टालू रवैया सामने आ चुका है।
नदी श्रेणी की भूमि के मामले में प्रशासन दून में 1214 से अधिक लोगों को नोटिस जारी कर चुकी है। सभी उपजिलाधिकारी कार्यालयों में इन प्रकरणों की सुनवाई की जा रही है। यह बात और है कि जिन लोगों के नाम के नोटिस जारी किए गए हैं, उनमें से बड़ी संख्या में लोग भूमि बेच चुके हैं। बड़ी संख्या में नोटिस बैरंग लौट रहे हैं तो जहां नोटिस प्राप्त भी किए गए हैं, उनमें भी लोग सुनवाई में नहीं पहुंच रहे।