सर जगदीश चंद्र बोस एक ऐसा नाम है जिन्होंने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया। इस महान वैज्ञानिक ने जीव विज्ञान और भौतिकी में कई आविष्कार किए थे। नवंबर में इनका जहां जन्मदिन आता है वहीं उनकी पुण्यतिथी भी इसी माह में आती है। आज उनकी पुण्यतिथी है। उन्होंने 1932 में आज के ही दिन गिरिडीह के एक मकान में अंतिम सांस ली थी। जिस मकान में वह यहां पर रहते थे उसको विज्ञान भवन का नाम दिया गया है। इसका उद्घाटन एकीकृत बिहार के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. एआर किदवई ने 28 फरवरी 1997 को किया था। उनका जन्म 30 नवंबर 1858 को बांग्लादेश में हुआ था।
आपको बता दें कि बोस ने अपनी ज्यादातर रिसर्च बिना लैब और उन्नत उपकरणों के किया था। वह पहले भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों पर रिसर्च की थी। इसके अलावा रेडियो और टीवी, राडार, रिमोट सेंसिंग सहित माइक्रोवेव ओवन की कार्यप्रणाली में भी उनका योगदान रहा है। उन्होंने दुनिया को बताया कि पेड़ पौधों में भी जीवन होता है। इसको मापने वाले यंत्र को उन्होंने केस्कोग्राफ का नाम दिया था। इससे पौधों में होने वाली वृद्धि तथा उद्दीपन की प्रतिक्रियाओं को मापा जाता है।
उनके बारे में एक दिलचस्प वाकया भी है। ये वाकया कहीं न कहीं विदेशियों की भारतीयों के प्रति सोच को भी दर्शाता है। जब बोस ने ये थ्योरी दी कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है तो इसका लोगों ने खूब मजाक बनाया। लेकिन इसको ही उन्होंने अपनी मजबूती भी बना लिया। वह जानते थे कि उनकी रिसर्च सही है। लिहाजा उन्होंने इसको साबित करने की घोषणा की।
इस प्रयोग के तहत उन्हें पेड़ को एक जहरीला इंजेक्शन दिया। इसके बावजूद पेड़ नहीं मुरझाया, जबकि ऐसा तुरंत हो जाना चाहिए था। कुछ देर बार पौधे पर बदलाव न होने की वजह से वहां पर मौजूद लोग बोस पर हंसने लगे और उनका मजाक उड़ाने लगे। बोस के लिए भी यह बेहद चुनौतीपूर्ण समय था।
वह अपने प्रयोग और शोध को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे। उन्हें लगा कि उनके इंजेक्शन से जब पौधे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा तो उन्हें भी कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। उन्हें एक शंका ये भी थी कि कहीं शीशी में जहर की जगह कुछ और तो नहीं था। यही सोचकर उन्होंने शीशी उठाई और उसके मिश्रण को पी लिया। इसके बाद उन्हें भी कुछ नहीं हुआ।
यह देखकर उनके पास एक शख्स आया और गिड़गिड़ाते हुए बोला कि वह नहीं चाहता था कि वो अपने प्रयोग को यहां सभी के सामने सच करके दिखा सकें। लिहाजा उसने इस जहर की बोतल को बदल कर उसमें उसी रंग का पानी भर दिया था। उसका मकसद सिर्फ इतना ही था कि वह अपने प्रयोग में कामयाब न हो सकें। यह सुनने के बाद बोस ने दोबारा पौधे को सही इंजेक्शन दिया। देखते ही देखते पौधा मुरझाने लगा। वह लोगों को उस रिसर्च के बारे में सफल हुए जिसपर दूसरे शक करते थे। इसके अलावा बोस माइक्रो वेव उत्पन्न करने का तरीका दिखाया। इसके अलावा उन्होंने ही हेनरिक हर्ट्ज के रिसीवर को एक उन्नत रूप भी दिया। दरअसल, मार्कोनी से पहले वर्ष 1885 में जगदीश चंद्र बोस ने रेडियो वेव के जरिए बारूद में विस्फोट करके दिखाया था।