BJP की अब विपक्ष पर नजर, अब केंद्र साधने की होगी कोशिश

लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 और 29 जुलाई को लखनऊ के प्रवास में शहरी विकास का बिगुल बजाएंगे। बीते सवा माह में वह प्रदेश के चार अलग-अलग छोर पर विकासपरक योजनाओं के साथ विपक्ष पर करारा प्रहार कर आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की बुनियाद मजबूत कर गए हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भले इन इलाकों में कमल खिल गया लेकिन, ये भाजपा के लिए बहुत अनुकूल नहीं रहे। विपक्ष के ऐसे गढ़ में संगठन और सरकार की ओर से मोदी मंत्र के जरिये फिर सिक्का चलाने की मुहिम चलाई जा रही है।

 शाहजहांपुर में शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान कल्याण रैली में अपनी योजनाओं और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर हमलावर होने के साथ ही दो बातें बहुत ही साफ कर दी। अव्वल तो संभावित महागठबंधन पर तंज कसते हुए उन्होंने दो टूक कहा कि ‘साइकिल हो या हाथी, चाहे जिसे बना लो साथी… स्वार्थ के खेल को देश समझ चुका है।’ यह भी कहा कि ‘जब दल के साथ दल मिलता है तो दलदल हो जाता है। जितना ही ज्यादा दलदल होगा कमल खिलाने का उतना ही नया अवसर मिलेगा।’

मोदी ने इस उद्घोष से यह मंत्र दे दिया कि भाजपा उप्र में कांग्रेस के साथ ही सपा और बसपा पर भी हमलावर रहेगी। शाहजहांपुर और आसपास के धौरहरा, मिश्रिख, हरदोई, सीतापुर, खीरी और पीलीभीत आदि लोकसभा क्षेत्रों पर नजर डालें तो 2014 में वहां कमल खिलाने में कामयाबी मिली लेकिन, 2014 से पहले सिर्फ एक पीलीभीत सीट ऐसी है जो भाजपा के अनुकूल रही। वजह यह भी है कि केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी का वहां अपना प्रभाव है। 2014 से पहले खीरी में 1991 और 1996 में भाजपा को जरूर कामयाबी मिली थी लेकिन, परिसीमन के बाद अस्तित्व में आयी धौरहरा सीट पर पिछली बार ही कमल खिला।

मिश्रिख में 1996 के बाद 2014 में जरूर सफलता मिली लेकिन, वहां भी कांग्रेस और बसपा का प्रतिनिधित्व रहा। हरदोई क्षेत्र में 1991 और 1996 की जीत के बाद पिछले और शाहजहांपुर में भी 1998 के बाद पिछले ही चुनाव में भाजपा को जीत का स्वाद मिला। दरअसल, इन इलाकों में कांग्रेस, समाजवादी और बसपा का प्रभाव रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के बूते इस इलाके को अपना बनाने की मुहिम तेज कर गए हैं। 

पूर्वांचल में भी मोदी के जादू का भरोसा 

इसके पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिस आजमगढ़ इलाके में मोदी गए वहां पिछले चुनाव में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव भाजपा की राह में रोड़ा बन गए थे। पूर्वी उत्तर प्रदेश की इस इकलौती सीट पर भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा। खास बात यह कि इस मंडल की लालगंज, बलिया और घोसी लोकसभा सीट पर 2014 में पहली बार कमल खिला।

कभी कम्युनिस्ट का केरल और समाजवाद का गढ़ कहे जाने वाले इन अंचलों में अबकी भी वर्चस्व स्थापित करने के लिए भाजपा मोदी के ही जादू के भरोसे है। ऐसे ही संतकबीरनगर और आसपास के क्षेत्रों में राम मंदिर आंदोलन के बाद भाजपा का उभार जरूर हुआ लेकिन, गोरखपुर और महराजगंज संसदीय क्षेत्र को छोड़कर ज्यादातर क्षेत्र भाजपा के लिए अनुकूल नहीं रहे। मोदी ने इन क्षेत्रों में भाजपा की नई फिजा बनाई है। चूंकि पिछले उप चुनाव में गोरखपुर में मिली हार के बाद भाजपा को सबक भी मिला इसलिए पार्टी खास सतर्कता बरत रही है। गौतमबुद्धनगर और आसपास के ज्यादातर क्षेत्रों में 2014 के पहले भाजपा कमजोर रही। 

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