इस अवसर पर 10वीं कक्षा तक मातृभाषा में शिक्षा पर बल देते हुए नायडू ने कहा कि सरकारों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी सीखने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन नींव मातृभाषा में ही होनी चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि संस्कृत भारत को जोड़नेवाली भाषा है। भारतीय ज्ञान-विज्ञान परंपरा संस्कृत भाषा में है। चाणक्य की राजनीति, भास्कराचार्य का गणित, चरक सुश्रुत का आयुर्वेद, पतंजलि का योग आदि विषय संस्कृत में विकसित हुए। इसी ज्ञान-विज्ञान के बलपर हमारे पुरखों ने कभी देश को समृद्ध किया था। यह हमारे ऋषि मुनियों द्वारा विकसित ज्ञानभंडार का हमने आज उपयोग करना चाहिए।
नायडू ने कहा कि आज के समय में संस्कृत की प्रासंगिकता पर कहा कि आज पर्यावरण, जल नियोजन और आरोग्य की समस्याएं हैं। संस्कृत में इन विषयों के समाधान के लिए बहुत कुछ है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि संस्कृत भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी का काम करती है, क्योंकि अधिकांश भारतीय भाषाएं इसी से जन्मी हैं। हम संस्कृत के बिना भारत की कल्पना नहीं कर सकते। जब तक हम संस्कृत नहीं सीखेंगे, तब तक भारत की सांस्कृतिक विरासत की गहराई और भव्यता का अहसास नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने संस्कृत के प्रसार के लिए कई कदम उठाये हैं। उन्होंने गैर सरकारी संगठनों से अपील की कि वे भी सरकार के इन प्रयासों में सहयोग दें। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री डॉ हर्षवर्धन, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, संस्कृत भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष प्रो. भक्तवत्सल शर्मा और संस्कृत भारती के अखिल भारतीय महामंत्री श्रीदेव पुजारी सहित अनेक गण्यमान्य लोग मौजूद थे।