सुप्रीम कोर्ट के सलाहकार ने सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई के समय कहा कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बैन ठीक उसी तरह है, जैसे दलीतो के साथ छुआछूत का मामला. कोर्ट सलाहकार राजू रामचंद्रन ने कहा कि छुआछूत के खिलाफ जो अधिकार है, उसमें अपवित्रता भी शामिल है. अगर महिलाओं का प्रवेश इस आधार पर रोका जाता है कि वह मासिक धर्म के समय अपवित्र हैं तो यह भी दलितों के साथ छुआछूत की तरह है. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका में उस प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसमें 10 से 50 वर्ष आयु की महिलाओं के प्रवेश पर रोक कि बात कही गई है. सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई के चलते राजू रामचंद्रन ने दलील दी कि अगर महिलाओं को मासिक धर्म के कारण रोका जाता है तो ये भी दलित के साथ छुआछुत की तरह है और उसी तरह के भेदभाव जैसा ही मामला है.
गौरतलब है कि संविधान के अनुसार धर्म, जाति, समुदाय और लिंग आदि के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव किया जाना गैरकानूनी माना गया है. मामले की सुनवाई करते हुए केरल हाई कोर्ट ने महिलाओं के प्रवेश के बैन को सही बताया था. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मंदिर में प्रवेश से पहले 41 दिन का ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और मासिक धर्म के कारण महिलाएं इसका पालन नहीं कर पाती हैं. सुनवाई के दौरान केरल त्रावणकोर देवासम बोर्ड की ओर से पेश सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दुनिया भर में अयप्पा के हजारों मंदिर हैं, वहां कोई बैन नहीं है, लेकिन सबरीमाला में ब्रह्मचारी देव हैं और इसी कारण तय उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बैन है, यह किसी के साथ भेदभाव नहीं है और न ही जेंडर विभेद का मामला है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने पूछा कि इसके पीछे तार्किक आधार क्या है? आपके तर्क का तब क्या होगा अगर लड़की का 9 साल की उम्र में ही मासिक धर्म शुरू हो जाए या जो ऊपरी सीमा है उसके बाद किसी को मासिक धर्म हो जाए? इस दौरान सिंघवी ने कहा कि ये परंपरा है और उसी के तहत एक उम्र का मानक तय हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए मंगलवार का समय दिया है.