दूर-दूर से काम की तलाश में आते हैं लोग,भूखों को निवाला देती है सरयू

अयोध्या नगरी में सरयू की महत्ता ऐसी है जैसे धरती के लिए चांद और सूरज. अयोध्या में सरयू के तट पर हर पल चहल पहल मिलेगी। पूरे देश से श्रद्धालु यहां आते हैं। सरयू के तट पर ही राम पौड़ी पर पिछले तीन सालों से दीपोत्सव का आयोजन यूपी सरकार करा रही है।

इस दीपावली 5 लाख से ज्यादा दीये जलाकर विश्वकीर्तिमान का दावा किया गया है। इसके लिए सरयू तट के पास राम की पौड़ी का जीर्णोद्धार किया गया है। सरयू के तट पर राम घाट हो या नया घाट यहां पूजा अर्चना कर डुबकी लगाते श्रद्धालु आपको सूर्योदय से सूर्यास्त तक नजर आएंगे। गुप्तार घाट जरूर पिकनिक स्पॉट की तर्ज पर विकसित हो गया है, यहां नाव भी डल झील के ‘शिकारा’ की तरह सजी धजी नजर आती हैं। गुप्तार घाट अयोध्या से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर है। कहा जाता है यहीं श्रीराम ने जल समाधि ली थी।

सरयू के ये तट सैंकड़ों लोगों की रोजी रोटी का सबब

फिर से लौटते हैं, रामघाट और नया घाट की ओर। सरयू के ये तट सैंकड़ों लोगों की रोजी रोटी का सबब हैं। दान पुण्य के लिए गाय वाले, पूजा के लिए पंडित, फूलों के लिए पत्तल-डोनों में पूजन सामग्री लिए लोग, नाविक सब यहां आने वाले श्रद्धालुओं के भरोसे परिवार का पेट पाल रहे हैं। घाट पर बनी सीढ़ियों में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे शिवलिंग और दूसरे देवी देवताओं की प्रतिमाएं विराजमान हैं, जहां पूजा कराई जाती है। स्थानीय निवासियों के बराबर ही बड़ी संख्या में बाहरी लोगों को भी रोजगार के लिए ये तट बारंबार बुलाता है। दीपोत्सव हो या फिर नवरात्र, चैत्र, कार्तिक मेला। आसपास के पचास किलोमीटर से लोग रोजगार की उम्मीद में सरयू तट पर पहुंच जाते हैं।

रोजगार के तलाश में सरयू के तट पर आते हैं लोग 

श्रीराम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद जमीनी विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। सुनवाई के बाद अब फैसले का इंतजार है। ऐसे में जागरण डॉट कॉम की टीम अयोध्या पहुंची। स्थानीय वाशिंदों से बात हुई तो वहीं इन ‘रामजी के दीनों’ से भी बात होनी जरूरी थी, जो रोजगार के तलाश में सरयू के तट पर आते हैं। बहराइच से आए कल्लू अपनी उम्र 100 साल के आसपास बताते हैं। टोकरी में सांप लिए रहते हैं. सपेरे कल्लू के पास 2 सांप हैं। दस पन्द्रह दिन के लिए अयोध्या आते हैं, हजार पन्द्रह सौ रुपए कमा ले जाते हैं। बीन बजाकर सांप का खेल दिखाने की उम्र तो नहीं रही, तो बस सांप के दर्शन कराकर ही श्रद्धालुओं से दान दक्षिणा मांगते हैं।

ढोल बजाकर लोगों को खुश करते छोटू चैत, सावन, कार्तिक, शिवरात्रि में अयोध्या आते हैं। बहरूपिया बन शादियों में नाचते हैं। कभी कभी दिन का हजार रुपए भी कमा लेते हैं। अपने काम से खुश हैं। हंसते मुस्कुराते कहते हैं कि न चोरी करते हैं न चंडाली करते हैं, ढोल बजाते हैं और खूब मुस्कुराते हैं। 10 रुपए दे दे कोई तो नाच उठते हैं।

कहते हैं कि मंदिर बन जाए तो सबको धन्यवाद कहेंगे

अयोध्या के पास के ही रहने वाले सरयू प्रसाद यादव के मां बाप ने सरयू नदी पर ही उनका नाम रख दिया। पति पत्नी दोनों फूलों की टोकरी लिए सरयू तट पर आ जाते हैं। 5 रुपए वैसे एक डोने फूल के मुकर्रर हैं, कभी कभी कोई खुश हो कर दस दे देता है तो कोई पांच रुपए में भी मोल भाव करता है। सरयू के चार लड़की दो लड़के हैं, खुद अंगूठा टेक हैं पर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। कहते हैं रामजी की दया से सब ठीक चल रहा है। फूलों के साथ खेतीबाड़ी का काम भी है। सरयू पढ़े नहीं हैं लेकिन जानते हैं कि कोर्ट में फैसला आना है। कहते हैं कि मंदिर बन जाए तो सबको धन्यवाद कहेंगे। लोग और आएंगे तो फूल और बिकेंगे।

ऐसे ही असंख्य लोगों को सरयू रोजगार दे रही है। सरयू पौराणिक और धार्मिक महत्ता वाली नदी है। ऋगवेद में भी इसका जिक्र मिलता है। रामचरित मानस में भी सरयू का उल्लेख है। सरयू को अयोध्या की पहचान बताते हुए इसमें लिखा है-

‘अवधपुरी मम पुरी सुहावनि,

दक्षिण दिश बह सरयू पावनी’

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