प्राचीन सभ्यताओं में भी खाने के वक़्त पर बहुत ज़ोर दिया जाता था. हिंदुस्तान में दिन में ज़्यादा खाने और रात में कम खाने पर ज़ोर था. प्राचीन चीन में सुबह 7 बजे से 9 बजे तक भारी नाश्ता और उसी हिसाब से दिन के अलग-अलग वक़्त में अलग ख़ुराक बतायी गई थी. चीन के विद्वान लोग भी रात के खाने को हल्का ही रखने की सलाह देते थे. जो लोग डाइटिंग करते हैं, उनके खान-पान में ज़ोर कम से कम कैलोरी लेने पर होता है. पर, वो खाना कब खाएं, इस पर भी ज़ोर देने की ज़रूरत है.देखा गया कि जिन महिलाओं ने दिन में ही ज़्यादा कैलोरी ली, उन्हें वज़न घटाने में आसानी होती है .
वहीं, देर रात तक खाने की आज़ादी वाली महिलाओं का वज़न कम घटा है लोग सोचते हैं कि जब हम सोते हैं, तो शरीर के भीतर गतिविधियां भी बंद हो जाती हैं. लेकिन ये हक़ीक़त नहीं है.’जब हम सुबह कुछ खाते हैं, तो उसे पचाने में ज़्यादा कैलोरी ख़र्च होती है. पर, दिन में या देर रात खाने पर उसे पचाने में कम कैलोरी ख़र्च होती है.दूसरी बात ये है कि जब हम देर रात तक खाना खाते हैं, तो हमारे शरीर को फैट पचाने का वक़्त नहीं मिल पाता. पेट भरा रहता है, तो शरीर को फैट जलाने की ज़रूरत नहीं होती. क्योंकि शरीर की फैट तभी इस्तेमाल होती है, जब हमें कुछ खाने को नहीं मिलता.
नाश्ता सबसे भारी-भरकम और रात का खाना बेहद हल्का-फुल्का होना चाहिए.जब युवा यूनिवर्सिटी में दाख़िला लेते हैं, तो आम तौर पर उनका वज़न बढ़ जाता है. अमरीका में तो इसके लिए ख़ास शब्द गढ़ लिया गया है- फ्रेशमैन 15. माना जाता है कि यूनिवर्सिटी में पहले साल छात्रों का वज़न 15 पाउंड तक बढ़ जाता है. इसकी एक वजह तो ये भी होती है कि छात्रों को घर का खाना नहीं मिलता. फिर उनकी उछल-कूद भी घर के मुक़ाबले कम हो जाती है.वैसे, अब वैज्ञानिक युवाओं के वज़न बढ़ने की एक और वजह गिनाने लगे हैं.
वो ये है कि छात्राओं के खान-पान का वक़्त यूनिवर्सिटी आते ही बदल जाता है. वो देर रात तक जगते हैं. खाना देर से खाते हैं. बेवक़्त सोते हैं. पार्टी करते हैं. शराब पीते हैं. इससे युवाओं की बॉडी क्लॉक बहुत डिस्टर्ब हो जाती है.कई दशकों से हमें बताया जाता रहा है कि वज़न बढ़ने से हमें टाइप-2 डायबिटीज़, दिल की बीमारियां और दूसरी लाइफस्टाइल बीमारियां हो जाती हैं. इसके पीछे खाने की क्वालिटी तो एक वजह होती ही है. साथ ही वर्ज़िश में कम वक़्त लगाना और कम कैलोरी बर्न करना भी कारण बन जाते हैं.