इनकी वजह से अस्थित्व में आई थी लथियम आयन बैट्री जिसके चलते हमारा जीवन हुआ आसान

रसायन का नोबेल हासिल करने वाले तीनों वैज्ञानिकों जॉन बी गुडएनफ, एम स्टेनली वीटिंघम और अकीरा योशिनो की खोज से ही आज हम स्मार्ट फोन और लैपटॉप का इस्तेमाल करने में सक्षम हुए हैं। इन तीनों के सहयोग से ही लिथियम आयन बैट्रियां अस्तित्व में आ सकीं। बिना किसी दिक्कत के सैकड़ों बार रिचार्ज किए जाने में सक्षम इन बैट्रियों ने मोबाइल फोन और लैपटॉप जैसे तार रहित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के विकास की बुनियाद रखी। इनके इस कदम ने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए जीवाश्म ईंधन पर दुनिया की निर्भरता को कम करने में भी बड़ा काम किया। इन बैट्रियों के इस्तेमाल से आज इलेक्ट्रिक कारें चलाई जा रही हैं और स्वच्छ स्नोतों से प्राप्त ऊर्जा के भंडारण में मदद कर रही हैं।

पुरानी है कहानी

नट में ही भले लिथियम तत्व अस्तित्व में आ गया हो, लेकिन इन्सान को इसका पता 1817 में चला। इसी साल स्टॉकहोम की एक खदान से निकाले गए नमूनों से स्वीडन के रसायनशास्त्री जॉन अगस्त अर्फवेडसन और जॉन जैकब बर्जीलियस ने इसका शुद्धीकरण किया। पत्थर (स्टोन) को ग्रीक में लिथोस कहते हैं, लिहाजा बर्जीलियस ने इसका नाम लीथियम रखा। भारी नाम के बावजूद यह सबसे हल्का ठोस तत्व है। तभी हमारे हाथों में मौजूद फोन के भार का हमें अहसास भी नहीं होता है

अजब हैं गुण-धर्म

सक्रियता इस तत्व की कमजोरी है और यही इसकी ताकत भी है। पिछली सदी के छठे दशक के शुरुआती वर्षों में स्टेनली विटिंघम ने लिथियम के बाहरी इलेक्ट्रॉन को निकालकर पहली काम करने में सक्षम लिथियम बैट्री तैयार की। 1980 में जॉन गुडएनफ ने बैट्री की क्षमता को दोगुना किया। 1985 में अकीरा योशिनो बैट्री से विशुद्ध लीथियम निकालने में सफल रहे। अब यह बैटरी सिर्फ लीथियम ऑयनों से बनी थी जो कि शुद्ध लीथियम से कई गुना ज्यादा सुरक्षित थी। इससे इस बैटरी के व्यावहारिक इस्तेमाल को बढ़ावा मिला।

तेल कंपनियों का भारी निवेश

तेल के खत्म होने की आशंका ने इस कारोबार से जुड़ी दिग्गज कंपनी एक्सॉन ने अपने कारोबार में विविधता पर जोर दिया। ऊर्जा के क्षेत्र में दिग्गज शोधकर्ताओं की इसने मदद ली। स्टेनली विटिंघम उन्हीं में से एक थे जो 1972 में एक्सॉन से जुड़े। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में रहते हुए उन्होंने रिसर्च किया कि एक अणु आकार के ठोस तत्व में आवेशित आयन जुड़ सकते हैं। इसे इंटरकालेशन कहते हैं। इसी के बाद स्टेनली ने टैंटालुम और बाद में टाइटेनियम के इस्तेमाल से बैट्री बनाई। इसमें लिथियम का इस्तेमाल निगेटिव इलेक्ट्रोड के रूप में किया गया।

बैटरी विकास में गुडएनफ की रुचि

बचपन में जॉन गुडएनफ को सीखने और पढ़ने में बहुत समस्या आती थी। जिसके चलते उनका रुझान गणित की ओर हुआ। इससे भौतिक विज्ञान में भी उनकी दिलचस्पी बढ़ी। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के लिंकन लैबोरेटरी में कई साल काम किए। यहीं पर इन्होंने रैंडम एक्सेस मेमोरी (रैम) के विकास में योगदान दिया। स्टैनली द्वारा तैयार बैटरी में इन्होंने बदलाव का सुझाव दिया कि उसके कैथोड को मेटल सल्फाइड की जगह मेटल ऑक्साइड से तैयार किया जाए। इस प्रयोग से बैटरी ने दो वोल्ट की बिजली पैदा की। 1980 में इन्होंने नया एनर्जी डेंस कैथोड तत्व की खोज की जो हल्की और ज्यादा ताकतवर बैटरी बनाने में सक्षम था। बैटरी के विकास क्रम में यह निर्णायक कदम साबित हुआ।

बैटरी रिसर्च की प्रमुख वजहें

बीसवीं सदी के मध्य में दुनिया में पेट्रोल कारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। उनके धुओं ने दुनिया के कई शहरों को वायु प्रदूषण से ढक दिया। इसके अलावा ईंधन के सीमित स्नोत ने नए विकल्प के तलाश को लेकर वाहन निर्माता और तेल कंपनियों की चिंता बढ़ाई। विकल्पों की तलाश में निवेश बढ़ने लगा। बिजली और वैकल्पिक ऊर्जा स्नोतों से चलने वाले वाहनों में ताकतवर बैट्री की दरकार थी। उस समय फिर से चार्ज की जा सकने वाली सिर्फ दो तरह की बैट्रियां मौजूद थीं। 1859 में खोजी गई हेवी लेड बैट्रियां (आज भी पेट्रोल से चलने वाली कारों में स्टार्टर बैट्री के रूप में इनका ही इस्तेमाल होता है) और निकेल-कैडमियम बैटरी।

विस्फोट से चिंता बढ़ी

बार-बार चार्ज करने पर लिथियम बैट्रियों में विस्फोट के मामले सामने आने लगे। लिहाजा मेटैलिक लिथियम इलेक्ट्रोड में एल्युमिनियम को भी जोड़ा गया। इलेक्ट्रोड्स के बीच इलेक्ट्रोलाइट को भी बदला गया। 1976 में स्टैनली विटिंघम ने अपनी खोज की घोषणा की। स्विस घड़ी निर्माता ने छोटे स्तर पर इनका उत्पादन शुरू किया।

योशिनो ने पहली सफल लिथियम ऑयन बैटरी बनाई

असाही कसेई कारपोरेशन से जुड़े इस वैज्ञानिक ने गुडएनफ के लिथियम कोबाल्ट ऑक्साइड कैथोड की जगह कार्बन आधारित कई तत्वों का एनोड के रूप में इस्तेमाल किया। पेट्रोलियम कोक का इस्तेमाल काफी सफल रहा। इससे इन्होंने हल्की बैट्री से चार वोल्ट की ऊर्जा हासिल की। 1991 में जापान की एक दिग्गज इलेक्ट्रानिक कंपनी ने पहली लिथियम आयन बैट्रियों को बेचना शुरू किया। इससे इलेक्ट्रॉनिक की दुनिया में क्रांति आई। मोबाइल फोन छोटे और हल्के होते। कंप्यूटर पोर्टेबल हुए। एमपी3 प्लेयर और टैबलेट का विकास हुआ।

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