नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आरे फॉरेस्ट में पेड़ों को काटने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि आरे फॉरेस्ट में यथास्थिति बहाल की जाए। पेड़ों को काटना तत्काल रोका जाए। कोर्ट ने कहा कि पौधों के जीवित बचने की दर का विश्लेषण किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ों को काटने का विरोध करने के दौरान गिरफ्तार सभी लोगों को रिहा करने का आदेश दिया है। इस मामले पर अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की पर्यावरण बेंच 21 अक्टूबर को करेगी। सुनवाई के दौरान वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि आरे जंगल है कि नहीं, इसका मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। शंकरनारायण ने कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) के पास भी इस बात पर फैसला करने के लिए याचिका लंबित है कि ये इलाका ईको सेंसिटिव है कि नहीं। ऐसी स्थिति में प्रशासन को पेड़ों को काटने से बचना चाहिए था, क्योंकि केस लंबित है।
याचिकाकर्ता ऋषभ रंजन की ओर से वकील संजय हेगड़े ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जंगल की परिभाषा 1997 से बदली नहीं है। तब जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि आप ये साक्ष्य दिखाइए कि वह जंगल था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरे ईको सेंसिटिव जोन में आता था उसका कोई नोटिफिकेशन दिखाइए तब शंकरनारायण ने कहा कि इस संबंध में नोटिफिकेशन राज्य सरकार ने वापस ले लिया। तब कोर्ट ने कहा कि हमें वो नोटिफिकेशन दिखाइए। जस्टिस अरुण मिश्रा ने पूछा कि क्या ये ईको सेंसिटिव जोन की बजाय नो डेवलपमेंट जोन तो नहीं था। आप अपने पक्ष में साक्ष्य दिखाइए। तब शंकरनारायण ने कहा कि आरे कालोनी एक अवर्गीकृत जंगल था। उन्होंने अपने दावे में एक मैनेजमेंट प्लान दिखाया।
शंकरनारायण ने कहा कि बांबे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने मौखिक रुप से कहा कि हमें विश्वास है कि पेड़ नहीं काटे जाएंगे क्योंकि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। महाराष्ट्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पर्यावरण हम सबकी चिंता का विषय है। पौधे लगाए गए हैं। तब जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि पौधे लगाना अलग बात है और उनकी देखभाल करना दूसरी बात है। तब तुषार मेहता ने सुझाव दिया कि दशहरे की छुट्टी के बाद जब कोर्ट खुले तो इस मामले पर पर्यावरण बेंच सुनवाई करे। फिलहाल तब तक पेड़ नहीं काटे जाएंगे जब तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अंतिम फैसला नहीं कर लेता।