वेब सीरीज पर दिखाई जाने वाली कहानी पर लगाम लगाना जरूरी

इन दिनों हमारे देश में वेब सीरीज की जमकर चर्चा हो रही है। एक तरफ तो इस प्लेटफॉर्म ने कलाकारों के लिए अभिनय और कमाई का नया क्षितिज खोला है तो दर्शकों के लिए भी एक ऐसी दुनिया सामने आ रही है जहां किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। कल्पना का खुला आकाश है जहां विचरने की पूरी छूट है। निर्माताओं, निर्देशकों के लिए मुनाफे का नया द्वार खुला है। कलाकारों, कहानीकारों, फिल्मकारों को काफी पैसे मिल रहे हैं, कई बार तो अभिनेताओं को फिल्म से ज्यादा पैसे वेब सीरीज में काम करने के लिए मिलने की खबरें आती हैं। ऐसी ही एक खबर सैफ अली खान के बारे में आई थी कि उन्होंने ‘सेक्रेड गेम्स’ करने के लिए एक फिल्म के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

कला के क्षेत्र में इसको एक सुखद स्थिति के तौर पर देखा जा सकता है, इसलिए कि कलाकारों को अपनी कल्पना को पंख लगाने का एक प्लेटफॉर्म मिल रहा है जहां उनकी कल्पना की उड़ान को बाधित करने के लिए किसी सेंसर की कानूनी बाध्यता नहीं है। कोई सिनेमेटोग्राफी एक्ट उन पर लागू नहीं होता है। लेकिन कई बार ये देखा गया है कि पाबंदी या बंदिश के कानून आदि की अनुपस्थिति में स्थितियां अराजक हो जाती हैं। इन दिनों जिस तरह के वेब सीरीज आ रहे हैं उसमें कई बार कलात्मक आजादी या रचनात्मक स्वतंत्रता की आड़ में सामाजिक मर्यादा की लक्ष्मण रेखा ना केवल लांघी जाती है, बल्कि इस रेखा को मिटाकर नई रेखा खींचने की एक कोशिश भी दिखाई देती है।

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