आप सभी ने महाभारत देखी या पढ़ी जरूर होगी. ऐसे में महाभारत के युद्ध की एक अहम वजह चौसर का वह खेल भी रहा जिसमें ना केवल धर्मराज युधिष्ठिर अपना राज्य, धन-संपत्ति और अपने भाईयों सहित खुद को हार गये बल्कि पत्नी द्रौपदी को भी दांव पर लगाया और हारे. जी हाँ, वहीं उस समय द्रौपदी को बाल पकड़ कर राजसभा में लाया गया और उनका चीरहरण हुआ, वहीं ऐसी घटनाओं ने कौरवों और पांडवों की आपसी दुश्मनी उस मोड़ पर लाकर खड़ी कर दी थी जिसके बाद वापसी के लगभग सभी रास्ते बंद हो गये. जी हाँ, आपको बता दें कि महाभारत की कहानी में द्रौपदी का चीरहरण एक ऐसा प्रकरण था जिसकी सबसे ज्यादा आलोचना होती है और आज भी लोग इस घटना को गलत मानते हैं.
यह घटना इसलिए भी हैरान करने वाली रही क्योंकि जिस राजसभा में भीष्म पितामह से लेकर गुरु द्रोण, कृपाचार्य, अर्जुन, भीम जैसे एक से बढ़कर एक महारथी बैठे हुए थे, उसमें इन सभी ने इस अनैतिक काम के समय नैतिकता और मजबूरी दिखाई थी और इस दौरान सब चुप रहे. वहीं अंत में बात द्रौपदी के चीरहरण तक आ पहुंची और उसके बाद श्रीकृष्ण ने अपनी माया से भरतवंश की लाज रख ली थी. कहा जाता है उस समय द्रौपदी को दांव पर लगाने का विदुर ने विरोध किया था. आइए जानते हैं कौन था विदुर और क्यों किया था विरोध.
कहा जाता है द्रौपदी के चीरहरण प्रकरण में तो भगवान श्रीकृष्ण उस समय आये जब द्रौपदी ने उन्हें याद किया लेकिन इससे पहले उस राजसभा में एक और शख्स भी था जिसने खुल कर द्रौपदी को दांव पर लगाये जाने के प्रस्ताव का विरोध किया था. जी हाँ, महाभारत की कथा के अनुसार ”युधिष्ठिर जब खुद को भी हार गये तब दुर्योधन ने उनसे पूछा कि अब दांव पर लगाने को क्या रह गया है? इस पर कर्ण ने तंज कसते हुए कहा कि पांडवों के पास ‘अब भी वह मृगनयनी और अभिमानी महिला द्रौपदी’ है जिसे दांव पर लगाया जा सकता है. द्रौपदी का इस तरह नाम लिये जाने से विदुर बहुत क्रोधित हुए और धृतराष्ट्र से दुर्योधन जैसे पापी और अभिमानी बेटे को त्यागने को कहा. दुर्योधन यह सुनकर नाराज हो गया और उसने अपने काका विदुर को राजभवन से बाहर कर देने और मार डालने तक की भी धमकी दी. विदुर ने बिना डरे और खुलकर दुर्योधन का विरोध किया और उसे मर्यादा में रहने को कहा. इसके बावजूद दूसरे लोगों की चुप्पी का फायदा उठा कर दुर्योधन वह करने में कामयाब रहा जिसे वह करना चाहता था.”
विदुर कौन थे? – आपको बता दें कि विदुर धृतराष्ट्र और पांडु के सौतेले भाई थे और कुरुवंश के प्रधानमंत्री थे. वहीं उनका जन्म एक दासी से हुआ था और उनके नीति के अद्भुत ज्ञान आज भी लोगों को दिए जाते हैं.