पितृपक्ष के दिनों में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी या श्राद्ध पक्ष एकादशी कहते हैं। पितृपक्ष में पड़ने के कारण इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि यदि कोई पूर्वज जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मों के कारण दंड भोग रहा होता है तो इस दिन विधि-विधान से व्रत कर उनके नाम से दान-दक्षिणा देने से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। इस वर्ष यह एकादशी 25 सितंबर को है।
पद्म पुराण में तो यह भी कहा गया है कि श्राद्ध पक्ष में आने वाली इस एकादशी का पुण्य अगर पितृगणों को दिया जाए तो नरक में गए पितृगण भी नरक से मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते है। इस व्रत को करने से सभी जीवत्माओं को उनके सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को यमलोक की यातना का सामना नहीं करना पड़ता।
इस दिन जल्दी उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पहले शालीग्राम की पूजा करें,इसके बाद भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें और उनकी आरती उतारें। इस दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है, फलाहार लेकर व्रत रख सकते हैं। इस दिन क्रोध, निंदा, झूठ एवं दिन में सोने से बचना चाहिए। जितना हो सके ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ का जप करें एवं विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करें। तुलसी एवं पीपल के पौधे लगाएं एवं एक योग्य ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा दें।