ध्यान का लक्ष्य है ह्रदय में व्याप्त प्राकृतिक प्रेम का विकास, जो सिखाता है सन्तुलित जीवन जीना

योगदा सत्संग ध्यान केंद्र में साधना संगम

लखनऊ : योगदा सत्संग ध्यान केंद्र, लखनऊ, द्वारा आयोजित तीन दिवसीय साधना संगम के दूसरे दिवस की शुरुआत सामूहिक शक्ति संचार व्यायाम तथा सामूहिक ध्यान से हुई। परमहंस योगानन्द जी ने साप्ताहिक सामूहिक ध्यान पर अत्यधिक महत्व देते थे, उन्होंने बताया कि सामूहिक ध्यान साधना करते भक्तों के समूह के चरों ओर एक आरोग्यकारी तथा उर्ध्व चेतना की ओर ले जाने वाला चुम्बक बना देता है जो नकारात्मक कार्मिक शक्तियों से हमारी रक्षा करता है और साधक अंतिम लक्ष्य, आत्म साक्षात्कार के आध्यात्मिक प्रयासों को शक्ति देता है। योगदा पथ में ध्यान सदैव दूसरों हेतु आध्यात्मिक आरोग्यकारी स्पंदन भेजने की प्राविधि से समाप्त होता है। इसके लिए परमहंस योगानन्द जी ने विश्वव्यापी प्रार्थना सर्किल की स्थापना की और विश्वभर में फैले अपने शिष्यों को इस से जुड़े रहने के कहा। परमहंस जी की महासमाधि के बाद योगदा सत्संग की द्वितीय प्रेजिडेंट श्री श्री दया माता जी ने अपने प्रवचनों में अक्सर बताया था कि भक्तों द्वारा प्रार्थनाओं से संसार होने वाली कई कार्मिक विपत्तिओं से बच गया है।

स्वामी हितेशानंद गिरी द्वारा प्रश्नोत्तर सेशन में बताया गया की अध्यात्म का रास्ता एकाग्र मन के द्वारा ही जाया जा सकता है। भगवद प्राप्ति में बहुत अधिक कठिनायों का सामना करना पड़ सकता है अगर हमारी दृष्टि अपने लक्ष्य पर निर्धारित न हो। रोचक कहानियों द्वारा यह बताते हुए स्वामीजी ने बताया कि संसार में रहते हुए संत्संग करना और भगवद प्राप्ति के लिए एकनिष्ट साधना करना एक विरोधाभास हो सकता है और परमहंस योगानन्द जी द्वारा बताया गया रास्ता उलझे हुए संसार में रहते हुए आध्यात्मिक जीवन जीना सिखाता है। आज के कॉम्प्लिकेटेड संसार में जीवन यापन करते हुए क्रोध, माया, मोह, ईर्ष्या, मद इत्यादि का सामना वैज्ञानिक साधना के द्वारा प्राप्त शान्ति से ही संभव है। जब तक हम उस शांति को आध्यात्मिक प्रविधियों द्वारा प्राप्त नहीं करते हैं, इस संसार में ईश्वर द्वारा बनाये गए जीवन जीने के नियमों को पूर्ण रूप से पालन नहीं कर सकते हैं और परीक्षात्मक परिस्थितियों में भटक जाते हैं।

परमहंस योगानन्द जी के गुरु श्री युक्तेश्वर के विषय में बताते हुए ध्यान का लक्ष्य है ह्रदय में व्याप्त प्राकृतिक प्रेम का विकास जो हमें संसार में सन्तुलित जीवन जीना सिखाता है। स्वामी कृष्णनंदा जी ने अपने प्रवचन में परमहंस जी के विषय में बताते कहा कि जब भक्त भगवान की पिपासा में सब प्रयास कर लेता है, तब भगवान भक्त के पास गुरु भेजते हैं। गुरु को यह जिम्मेदारी दी गयी है कि वोह भक्त को परमात्मा से मिलाने के लिए गाइडेंस दे।

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