लखनऊ : भले ही देश के नीतिनियन्ता बर्बाद अर्थव्यवस्था से ध्यान भटकाकर नई वाहन नीति से वसूले गए भारी जुर्माने से खजाना भर देने का सपना देख रहे हों, लेकिन सच यह है कि जज़िया कर के कारण देश की तरक्की का पहिया जाम हो जाने का डर है। यह डर इसलिए है क्योंकि सत्ता के घमण्ड में चूर होकर इन लोगों ने देश की वास्तविकता से आंखे मूंद ली हैं। नीति नियंताओं को नहीं पता कि इस देश का नौजवान कितनी मिन्नतें करके अपने अभिभावकों से एक मोटरसाइकिल हासिल करता है और जब उसी को चालान के नाम पर लूटने की कोशिश होती है तोे भारी जुर्माना न भर पाने के कारण कितना दर्द और अपमान सहन करना पड़ता है। उन्हें यह भी नही पता कि अपने पास कोई दुपहिया न होने पर कोई ज़रूरतमंद कहीं आने जाने के लिए पड़ोसी और दोस्तों की मोटरसाइकिल मांग कर कैसे अपना काम चलाता है, लेकिन इस नियम के कारण अब उन्हें मांगने पर भी नही मिल रही है। वे नही जानते कि किसी परिजन की बीमारी की आपात स्थिति में अस्पताल पहुंचने की जल्दी में लोग कैसे कागज और लाइसेंस भूल जाया करते हैं। उन्हें यह भी नही पता कि देश का किसान अपने ट्रैक्टर के लिए डीजल लेने उसी पुरानी मोटरसाइकिल से जाता है, जिसके कागजात उसकी कोठरी के किसी कोने में धूल फांक रहे होते हैं। अपनी खेती में उगाई थोड़ी सी सब्जियां मोटरसाईकिल पर लादकर मंडी पहुंचाने वाला किसान डर रहा है।
सत्ताधारियों को नही पता कि एक साधारण नागरिक कैसे किश्तों पर गाड़ी लेकर किराए पर चलाता है, और बमुश्किल गुजारा करता है लेकिन लुटेरी मानसकिता के भारी जुर्माने के कारण बाहर निकलने में डर रहा है। कम आमदनी वाले निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की सेकेण्ड हैण्ड कार तो अब उनके लिए जी का जंजाल बन गई है, क्योंकि जितनी कार की कीमत नही उससे ज्यादा जुर्माना भरना उनके बस की बात नही। छोटे व्यापारी, दुकानदार, नौकरीपेशा लोग इस भारी भरकम टैक्स सिस्टम से हलकान हैं। ऐसी स्थिति में तमाम प्रदेशों में ट्रांसपोर्ट और ट्रेवेल कारोबारियों ने हड़ताल और विरोध प्रदर्शन करते हुए चक्का जाम कर दिया है। जिससे देश की आम जनता त्रस्त है, और देश का विकास का पहिया और बुरी तरह से जाम होता जा रहा है।
देश की जनता अपनी समझ के अनुसार अपेक्षाकृत एक बेहतर सरकार चुनती है, ताकि उसके जीवन स्तर में थोड़ी बढ़ोत्तरी हो, उसकी आमदनी बढ़े, कर का बोझ कम हो और सुरक्षित वातावरण मिल सके। लेकिन दुर्भाग्यवश इसी जनता ने झूठ-फ़रेब के झाँसे में आकर अपने ऊपर एक ऐसी तानाशाही सरकार का बोझ रख लिया है, जिसके नीचे दबकर ख़ुद ही सिसकने को विवश है। लेकिन कहते हैं कि अन्याय की उम्र ज़्यादा लम्बी नही होती, हिटलरशाही सरकार को ज्ञात होना चाहिए कि जो जनता किसी को आसमान में बिठा सकती है, वही जनता उसे मिट्टी में भी मिला सकती है। हम देश के किसानो, छात्रों, नौजवानों, व्यापारियों के साथ प्रत्येक नागरिक से अपील करते हैं कि इस पीड़ा से गुज़रने वाला हर शख़्स अपनी आवाज़ बुलन्द करे और आगे आकर तानाशाही के विरुद्ध संघर्ष के लिए एकजुट हों।
जीना है तो मरना सीखो, क़दम-क़दम पर लड़ना सीखो!