विपक्ष की तरफ से फिर ‘सूट बूट की सरकार’ जैसे हमले से बचने के लिए सरकार ने जियो इंस्टीट्यूट के मामले में फुर्ती दिखाते हुए यह सफाई पेश की कि उसे उत्कृष्टता का ‘टैग’ नहीं बल्कि सिर्फ आशय पत्र (लेटर ऑफ इन्टेंट) मिला है. सरकार का यह भी कहना है कि जियो का प्रस्ताव एक विशेषज्ञ समिति द्वारा तय गाइडलाइन के मुताबिक था, इसलिए उसे मंजूरी दी गई.
पूरी करनी होगी शर्त
सरकार का कहना है कि यदि तीन साल के बाद रिलायंस फाउंडेशन ने अपने घोषित प्रस्तावों को लागू नहीं किया तो उससे यह ‘उपाधि’ (इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेन्स यानी उत्कृष्ट संस्थान की) वापस ली जा सकती है. आजतक-इंडिया टुडे ने इस तरह का टैग देने के लिए बनी एम्पॉवर्ड एक्सपर्ट कमिटी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालास्वामी से खास बातचीत की.
इस समिति के अन्य सदस्यों में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तरुण खन्ना और ह्यूस्टन सिस्टम यूनिवर्सिटी की आठवीं चांसलर रेनू खातोर शामिल हैं. एन गोपालास्वामी बताया कि यह नीति तीन श्रेणी की संस्थाओं के लिए थी. इनमें निजी क्षेत्र के स्पांसर्ड या ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट भी शामिल हैं. यह नीति 2016-17 में बनी थी और इसके तहत कुल 114 आवेदन हासिल हुए थे.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेन्स का टैग हासिल करने के लिए क्वालिफाई करने की नियम-शर्तें काफी कठिन थीं. पहले के विपरीत इस बार इसके लिए बनी समिति में तीन प्रख्यात लोगों को शामिल किया गया था.’
तीन साल का समय
गोपालास्वामी ने कहा, ‘किसी को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेन्स का टैग नहीं दिया गया है. यह सिर्फ एक आशय पत्र (LOI) है. स्पांसर ने सरकार के साथ एक एमओयू पर दस्तखत किए हैं और उसे अपने प्रस्तावों को लागू करने के लिए तीन साल का समय दिया गया है. तीन साल के बाद एम्पॉवर कमिटी इन सबका आकलन करेगी. सभी पर खरा उतरने के बाद ही उसे टैग दिया जाएगा. ऐसा नहीं हुआ तो उसका आशय पत्र वापस लिया जा सकता है.’
विपक्ष का हमला
विपक्ष आरोप लगा रहा है कि रिलायंस जैसे बड़े कॉरपोरेट घरानों के लिए नियम-कायदों में ‘बदलाव’ किया गया है. कांग्रेस नेता पीएल पूनिया ने कहा, ‘भारत सरकार मुकेश अंबानी और रिलायंस इंडस्ट्री को खुश करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. जियो इंस्टीट्यूट को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा दे दिया गया. हम जानना चाहते हैं कि यह किन मानदंडों पर किया गया. अन्य प्रतिष्ठित संस्थाओं को क्यों नहीं मिला. यह बहुत दुखद स्थिति है. सरकार के एजेंड को कुछ उद्योगपतियों को हाईजैक कर लिया है.’
लेकिन वरिष्ठ सरकारी अधिकारी इसे खारिज करते हैं. उन्होंने कहा, ‘दुनिया भर में शीर्ष शैक्षणिक संस्थाएं चैरिटी ट्रस्ट द्वारा चलाई जाती हैं. इसके पीछे सोच यह होती है कि वैश्विक प्रतिष्ठा वाली बड़ी संस्थाएं तैयार करने के लिए ज्यादा धन जुटाया जा सके.’
एक्सपर्ट कमिटी के एक सदस्य ने कहा, ‘आवेदन करने वाले संस्थान के लिए एक शर्त यह थी कि संस्थान चलाने के लिए खुद उसके पास फंड हो, न कि वह किसी स्पांसर पर आश्रित हो. कई ऐसे मामले खारिज किए गए हैं जिनमें फंड ट्रांसफर का कोई विवाद था या वित्त मंत्रालय के समक्ष टैक्स का मसला लंबित था.’
उच्च शिक्षा सचिव आर सुब्रमण्यम ने कहा, ‘ कमिटी ने अपनी पूरी समझदारी और जांच-पड़ताल के बाद, संबंधित लोगों से बात करने, उनके प्रस्तावों को पढ़ने, उनके विजन डॉक्यूमेंट को देखने, जमीन हासिल कर सकने, इमारत बनाने की उनकी क्षमता और उनकी कोर टीम के बारे में जानने के बाद ही किसी संस्था को यह मान्यता दी है. इसके सदस्यों में सभी प्रख्यात लोग हैं. हम उनके फैसले का सम्मान करते हैं.’
रिलायंस ने खरीदी जमीन
सूत्रों के अनुसार तीन साल के भीतर जमीन और फैकल्टी आदि की शर्तों को पूरा करने के मामले में प्रस्तावित जियो इंस्टीट्यूट पूरी तरह से खरा उतरता है. रिलायंस ने इसके लिए नवी मुंबई के पास करजात में 80 एकड़ जमीन हासिल कर ली है.
ग्रीनफील्ड में सिर्फ जियो का चयन
दरअसल, सोमवार को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा छह संस्थानों को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा प्रदान करने की खबर आई थी. सूत्रों के अनुसार इसके लिए कुल 29 निजी संस्थाओं ने आवेदन किया था, जिनमें से 11 आवेदन ग्रीनफील्ड कैटेगिरी (जो अभी शुरू किए जाने हैं) में थे. ग्रीनफील्ड में सिर्फ जियो को चुना गया. मौजूदा निजी संस्थाओं में मणिपाल एकेडमी ऑफ एजुकेशन और बिट्स पिलानी को चुना गया है. सार्वजनिक संस्थाओं में आईआईएसी बेंगलुरु, आईआईटी बॉम्बे और आईआईटी दिल्ली को चुना गया है.