12 सितम्बर को है अनंत चतुर्दशी, यहाँ जानिए व्रत की कथा

हर साल भाद्रपद मास के कुछ बड़े व्रतों में अनंत चतुर्दशी का व्रत भी किया जाता है जो इस साल 12 सितम्बर को मनाया जाने वाला है. ऐसे में यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे हर साल भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. ऐसे में इस व्रत के दिन श्री हरि की पूजा करते है और पुरुष दाएं जबकि स्त्रियां बाएं हाथ में ‘अनंत धागा’ धारण करते हैं. आप सभी को बता दें कि अनंत दरअसल राखी के समान ही एक खास रंग का धागा होता है जिनमें 14 गांठे होती हैं. ऐसे में यह एक व्रत है और इसे घर या मंदिर में ही किया जाता है. कहते हैं गणेश चतुर्थी के बाद गणपति का विजर्सन भी कई जगहों पर अनंत चतुर्दशी के दिन ही होता है और यह मुख्य व्रत में से एक माना जाता है. अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं अनंत चतुर्दशी व्रत की कथा.

अनंत चतुर्दशी व्रत की कथा – पुराने समय में सुमंत नाम के एक ऋषि थे. उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था. दोनों की परम सुंदरी कन्या सुशीला थी. वह धर्मपरायण युवती थी. सुशीला जब थोड़ी बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई. पहली पत्नी के मरने के बाद सुमंत को अपने बच्चों के लालन-पालन की चिंता हुई. ऐसा विचार कर सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह किया. कुछ समय पश्चात सुशीला का विवाह उनके पिता ऋषि सुमंत ने कौण्डिन्य ऋषि के साथ कर दिया. विवाह के बाद भी हालांकि, सुशील को दरिद्रता ही झेलनी पड़ी. एक दिन जंगलों में भटकते हुए सुशीला ने देखा- वहां पर कुछ स्त्रियां किसी देवता की पूजा पर रही थीं. सुशीला ने जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने अनंत व्रत के महत्व के बारे में बताया.

सुशीला ने जब यह सुना तो उन्होंने इस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला अनंत धागा बांध कर ऋषि कौण्डिन्य के पास आ गई. धीरे-धीरे सुशील और कौण्डिन्य के दिन फिरने लगे. एक दिन ऋषि कौण्डिन्य ने जब यह धागा देखा तो इस बारे में पूछा. सुशीला ने पूरी बात बता दी. इससे कौण्डिन्य क्रोधित हो गये और सोचा कि उनकी मेहनत का श्रेय भला पूजा को क्यों जा रहा है. क्रोधित कौण्डिन्य ने इसके बाद वह धागा तोड़ दिया. इसके साथ ही एक दोनों के दिन एक बार फिर बदलने लगे. धीरे-धीरे उनकी सारी संपत्ति नष्ट होती गई. कौण्डिन्य ने जब इस बार में अपनी पत्नी से चर्चा की तो पत्नी ने कहा कि अनंत भगवान का अपमान करने से ऐसा हो रहा है. कौण्डिन्य को अपनी इस गलती का ऐहसास हुआ.

इसके बाद उन्होंने 14 सालों तक कौण्डिन्य ने अनंत चतुर्दशी का व्रत किया. इससे हरि प्रसन्न हुए और धीरे-धीरे दोनों के दिन एक बार फिर बदलने लगे और वे सुखपूर्वक रहने लगे. कहते हैं कि श्रीकृष्ण की बात मानकर युधिष्ठिर ने भी अनंत व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए और उनके दिन फिरे.

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com