सेहत के साथ लोगों का सर दर्द बन प्लास्टिक कचरा
-धनंजय सिंह
लखनऊ : पॉलीथिन आज आम लोगों की दिनचर्या में शामिल हो गया है। आम आदमी के दैनिक उपभोग में पॉलिथीन की हिस्सेदारी 95 फीसदी है, सरकार व आम आदमी के बीच समस्या सिंगल यूज्ड प्लास्टिक बनी है, जबकि प्रदेश में सभी तरह पॉलिथिन के इस्तेमाल पर रोक लगी है। लेकिन पॉलीथिन के कचरे से पर्यावरण व स्वास्थ्य के साथ शहरी क्षेत्रों में लोगो का सर दर्द बन गया है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगामी 2 अक्टूबर से पॉलीथिन बंद करने की घोषणा की है। हांलाकि पॉलिथिन बैन करने वाला यूपी 19वां राज्य पहले ही बन चुका है। यूपी सरकार पॉलीथिन की बिक्री पर बैन किये जाने के बावजूद अभी भी राज्य में चोरी छिपे बिक रहा है, आखिर कैसे?
यहाँ यह बताना जरूरी है कि प्लास्टिक दो तरह का होता है, एक सिंगल यूज्ड, दूसरा मल्टीयूज्ड प्लास्टिक होती है। सिंगल यूज्ड प्लास्टिक जैसे गुटखा, चिप्स के पैकेट आदि आते है, जो एक बार प्रयोग कर फेक दिया जाता है। मल्टीयूज्ड प्लास्टिक में पैकेजिंग मैटेरियल के लिए प्रयोग किया जाता है,जिसको रिसाइक्लिंग क़र दुबारा प्रयोग किया जा रहा है। यह प्लास्टिक 50 माइक्रॉन से ऊपर की है, जबकि समस्या सिंगल यूज्ड पॉलीथिन जो 50 माइक्रॉन से कम होती है जिसका इस्तेमाल महज 5 फीसदी किया जा रहा है। देश में 95 फीसदी मोटी प्लस्टिक, जो 50 माइक्रॉन से ऊपर के है उनका प्रयोग किया जा रहा है। भारत में एक व्यक्ति पर पॉलीथिन प्रतिवर्ष 11 किलोग्राम का खपत करता है, जबकि यूरोप और चीन में एक व्यक्ति प्रतिवर्ष 80 किलोग्राम पॉलीथिन खपत करते हैं। प्लास्टिक सुबह टूथपेस्ट से लेकर मोबाइल, गाड़ी, शर्ट के बटन का प्रयोग आम आदमी कर रहा है।
योगी सरकार पिछले साल प्रदेश में पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगा दिया था। तीन चरणों में लगे पॉलिथीन प्रतिबंध में हर तरह के पॉलिथीन इस्तेमाल पर रोक है। थर्माकोल और प्लास्टिक के उत्पाद भी प्रतिबंधित हैं। हालांकि प्रतिबंध के बावजूद अब भी पॉलिथीन का इस्तेमाल हो रहा है। लगातार हो रहे इस्तेमाल पर सरकार ने आदेश जारी किए हैं कि पॉलिथीन का इस्तेमाल करने वाली दुकानों और होल सेलरों पर तो कार्रवाई की ही जाए लेकिन जिन फैक्ट्रियों में इनका निर्माण जारी है, उनपर ज्यादा सख्ती हो। यूपी के एक दर्जन से अधिक शहरो में लगभग 450 छोटी-छोटी पॉलीथिन की उत्पादन इकाइयां लगी थी, जो सरकार की सख्ती के बाद बंद हो गयी है। यूपी सरकार ने छापे के दौरान उत्पादन करने वाली यूनिट के साथ जो पॉलीथिन नहीं बनती थी। उनको भी सील कर देती थी ऐसे में केवल पॉलिथीन वाली यूनिट पर ही कार्रवाई हो, न कि पूरी फैक्ट्री सील किये जाने के निर्देश जारी किये। इसका नतीजा यह रहा कि पॉलीथिन की इकाइयां तो बंद हो गयी, संचालको ने पॉलीथिन की जगह दूसरी कागज की यूनिट लगा कर उत्पादन शुरू कर दिए है।
कैसे बनता है पॉलीथिन
प्लास्टिक कार्बनिक कहे या पेट्रोलियम के कचरे से बनाया जाता है। सेल्यूलोस, कोयला, प्राकृतिक गैस, नमक और कच्चा तेल जैसी प्राकृतिक उत्पादों से प्लास्टिक बनाते हैं। कच्चा तेल हजारों यौगिकों का एक जटिल मिश्रण होता है। उसमें बहुत ज्यादा कार्बन होता है। उससे प्लास्टिक बनाने के लिए उसे संसाधित करना पड़ता है। प्लास्टिक में पॉलीमर्स होते हैं जो कार्बन वाले मोनोमर्स से बने होते हैं। प्लास्टिक को पॉलीमर भी कहते हैं। उसे प्राकृतिक उत्पादों के रूपांतरण से बनाते हैं, या फिर तेल, प्राकृतिक गैस या कोयले से मिलने वाले प्राथमिक रसायनों को मिलाकर बनाते हैं।
कैसे होती हैं रिसाइक्लिंग
प्लास्टिक की लगभग 100 मिलियन बोतलों का उपयोग हर दिन किया जाता है। जिनमें से 80% बस गैर-बायोडिग्रेडेबल कूड़े बन जाते हैं। जमा हुआ कचरा हमारे पर्यावरण के स्वास्थ्य पर एक बड़ा खतरा है। प्लास्टिक को जैव-अपग्रेड करने के लिए 1,000 साल से अधिक समय लगता है और यदि जलाया जाता है, तो जहरीले धुएं का उत्पादन होता है। यदि हम पर्यावरण को बचाने में मदद के लिए अपना हिस्सा बनाना चाहते हैं तो इसलिए इसका पुन: उपयोग यानि रीसाइक्लिंग का कदम उठा सकते है। रिसाइक्लिंग, किसी भी प्रकार की वस्तु का उपयोग कर बेकार होने पर पुनः उसका निर्माण कर वापस से उपयोग में ला सकते है। किसी भी वस्तु का पुनः उपयोग करना ही रीसाइक्लिंग कहलाता है।
किसी भी प्लास्टिक कचरे का पुनर्नवीनीकरण करने से पहले, इसे पांच अलग-अलग चरणों से गुज़रना पड़ता है ताकि इसे विभिन्न प्रकार के उत्पादों के निर्माण के लिए बनाया जा सके। प्रत्येक प्लास्टिक की वस्तु कि छंटाई की जाती है ताकि वस्तु बनाने के अनुसार इसे मशीन में तदनुसार संसोधित किया जा सके। छटाई होने के बाद प्लस्टिक की वस्तुओं की धुलाई कि जाती है। एक बार सॉर्टिंग हो जाने के बाद, प्लास्टिक कचरे को लेबल और चिपकने वाली अशुद्धियों को हटाने के लिए ठीक से धोया जाना चाहिए। यह तैयार उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाता है। प्लास्टिक को धोने के बाद प्लास्टिक को श्रेडर मशीन में डालकर प्लास्टिक को छोटे छर्रों में फाड़ते हैं, उन्हें अन्य उत्पादों में रिसाइक्लिंग के लिए तैयार करते हैं। इसमें कटे हुए प्लास्टिक को पिघलना शामिल करते है ताकि इसे छर्रों में निकाला जा सके, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक उत्पादों के लिए किया जाता है।
किस-किस सरकार में हुआ प्लास्टिक पर प्रतिबंध
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 15 जुलाई 2018 को प्लास्टिक पर बैन की घोषणा की थी। खास बात यह है कि 2015 से लेकर यह तीसरा मौका है जब यूपी में प्लास्टिक बैन की घोषणा की जा चुकी है। 18 नवंबर 2015 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को पूरे राज्य में प्लास्टिक बैन का आदेश दिया था। हाई कोर्ट के आदेश के बाद अखिलेश यादव सरकार ने प्लास्टिक पर बैन लगाने का फैसला किया था। जनवरी 2016 में यूपी सरकार ने राज्य में प्लास्टिक बैन कर दिया था। 2017 में एक बार फिर राज्य में प्लास्टिक पर बैन लगा था लेकिन, यह सफल नहीं हो सका था। योगी सरकार में भी 15 जुलाई के बाद प्लास्टिक के कप, ग्लास और पॉलिथीन का इस्तेमाल होने पर जुर्माना वसूला जा रहा हैं। इसके लिए प्रत्येक जिले में एक प्रशासनिक स्तर अधिकारी की अध्यक्षता में कमेटी बनायीं गयी हैं। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पॉलिसी के मुताबिक 50 माइक्रॉन से पतली पॉलिथिन का इस्तेमाल प्रतिबंधित होगा। आदेश का उल्लंघन करने पर 50 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
प्लास्टिक पर बैन के बाद सबसे बड़ी दिक्कत लोगों के बीच जाकरूकता का अभाव होना है कि पॉलीथिन को कैसे प्रयोग करें, उसको कहा फेंके, जबकि भारत में जागरूकता की कमी है। जिसकी वजह से भारत में पॉलीथिन आज एक समस्या बन गयी है। भारत में एक अभियान के तहत लोगो में जागरूकता फ़ैलाने की जरुरत है, जिससे लोग इसकी बुराई और अच्छाई को जान सके। सार्वजानिक स्थलों पर डस्टबिन की व्यस्था की जाएगी तब ही इसके कचरे को रोका जा सकता है।