अंतरराष्ट्रीय न्यायालय आज कुलभूषण जाधव मामले में अपना फैसला सुनाने जा रहा है. जाधव मामले से करीब 19 साल पहले भारत और पाकिस्तान के बीच अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भिड़ंत देखने को मिली थी. उस वक्त पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय गया था, लेकिन उस बार भी उसको पीछे हटना पड़ा था. दरअसल, पाकिस्तान 21 सितंबर 1999 को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय पहुंचा था और आरोप लगाया था कि उसके एयरक्राफ्ट को भारतीय वायुसेना ने मिसाइल से मार गिराया है.
पाकिस्तान का कहना था कि भारतीय वायुसेना ने उसके एयरक्राफ्ट को उस समय मार गिराया, जब वह पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में था. इस एरियल इंसीडेंट में एयरक्राफ्ट में सवार 16 लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले में पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से अपील की थी कि मामले में उसको भारत से मुआवजा दिलाया जाए. हालांकि भारत ने शिमला समझौता 1972 और लाहौर घोषणा 1999 का हलाला देते हुए कहा कि इस मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय को सुनवाई करने का कोई अधिकार ही नहीं है.
भारत का कहना था कि शिमला समझौता और लाहौर घोषणा में साफ किया गया है कि भारत और पाकिस्तान अपने मतभेदों और विवादों को आपस में मिलकर सुलझाएंगे. दोनों देश अपने विवादों को सुलझाने के लिए तीसरे को शामिल नहीं करेंगे. लिहाजा इस पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय न सुनवाई कर सकता है और न ही फैसला सुना सकता है.
जब यह मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय पहुंचा था, उस समय अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत और पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व नहीं था. लिहाजा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के स्टैट्यूट के अनुच्छेद 31 के पैराग्राफ्स 2 और 3 के तहत भारत और पाकिस्तान के एक-एक एडहॉक जज यानी तदर्थ न्यायाधीश को नियुक्त किया गया था. एडहॉक न्यायाधीश भी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के स्थानीय न्यायाधीशों की तरह ही होते हैं. उनको भी वैसी ही शपथ लेनी पड़ती है और सुविधाएं मिलती हैं, लेकिन इनका कार्यकाल अस्थायी यानी बेहद कम समय के लिए होता है.
इसके बाद अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने भारत के जीवन रेड्डी और पाकिस्तान के पीरजादा को एडहॉक न्यायाधीश नियुक्त किया था. ऐसे न्यायाधीशों से निष्पक्ष होकर फैसला सुनाने की उम्मीद की जाती है, लेकिन कई बार ऐसा व्यवहार में नहीं हो पाता है. इस एरियल इंसीडेंट मामले में भी ऐसा ही हुआ. इस मामले को लेकर भारत और पाकिस्तान के एडहॉक न्यायाधीश आपस में भिड़ गए. इन दोनों न्यायाधीशों ने अपने-अपने देश के पक्ष में फैसला सुनाया यानी जीवन रेड्डी ने भारत और पीरजादा ने पाकिस्तान के पक्ष में फैसला सुनाया था.