गंगा में सीधे गिरने वाले विष यानी केमिकलयुक्त पानी व सीवेज पर एनजीटी और सरकार ने पाबंदी लगाई गई तो इसका असर भी दिखने लगा है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की मानें तो कुंभ से पहले उठाए गए इस कदम के बाद प्रदूषित पानी न जाने से गंगाजल विषाणु रहित हो गया। प्रयागराज में कुंभ स्नान शुरू होने से पहले गंगा को निर्मल बनाने की मंशा से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और प्रदेश सरकार ने सख्ती की थी।
नतीजतन, गंगा में उद्योगों का केमिकलयुक्त पानी जाना तो रुक ही गया साथ में कानपुर-उन्नाव सहित दूसरे शहरों में नाले टैप कर सीवेज पर भी रोक लगा दी गई। गंगा को सबसे ज्यादा प्रदूषित करने वाली उन्नाव और कानपुर की टेनरियों के साथ सैकड़ों फैक्ट्रियों की बंदी का असर भी दिखा। वर्तमान में गंगाजल में टीडीएस 65 से 80 है और घुलित ऑक्सीजन भी मानक के अनुरूप है।
गंगाजल की रिपोर्ट पर एक नजर
कुंभ से पहले दिसंबर-18 में -पावर ऑफ हाइड्रोजन (पीएच)-9.28 से 9.36 -डिसॉल्व ऑक्सीजन (डीओ)-6.2 से 6.4 -टोटल डिसॉल्व सॉलिड (टीडीएस)-150 से 200
कुंभ के बाद जून-19 में -पावर ऑफ हाइड्रोजन (पीएच) 7.66 से 7.97 -डिसॉल्व ऑक्सीजन (डीओ) 9.3 से 9.5 –टोटल डिसॉल्व सॉलिड (टीडीएस)-65 से 80 आंकड़े मिलीग्राम प्रति लीटर में
ये है मानक पीएच- 6.5 से 9 के बीच होना चाहिए डीओ- 4.0 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम नहीं होना चाहिए टीडीएस- 50 से 300 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए
कुंभ से पहले उद्योगों पर सख्ती करने और सीवेज आदि के पानी को गंगा में जाने से रोकने का परिणाम यह हुआ कि इसकी गुणवत्ता बेहतर हुई है। लगातार जांच कराकर पानी पर निगाह रखी जा रही है। -विमल कुमार, क्षेत्रीय अधिकारी, उप्र प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड