लखनऊ : हमारा देश 1947 में आज़ाद तो हुआ था लेकिन महिलाओं और पुरुषों को आज भी अपनी मर्ज़ी से काम करने की आज़ादी नहीं मिल पायी है। आज भी लड़के-लड़कियों में हर स्तर पर फर्क किया जाता है। हमारे समाज में सभी व्यवसाय को किसी एक लिंग से जोड़ देते हैं, जैसे घर का काम महिलाओं को और बाहर का काम पुरुषों को ही करना चाहिए। इससे कहीं ना कहीं आज भी महिलाओं के साथ भेदभाव हो रहा है। इसी कारण वह आज भी पुरुषों के मुकाबले पीछे हैं। पीछे होने के कारण उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
इसी के मद्देनजर लिंग संवेदीकरण का इरादा लेकर समाज में युवाओं की सोच बदलने के प्रयास में जुटी अनुष्का चतुर्वेदी चेंजलूम्स फेलोशिप के अंतर्गत ‘सुधरेंगे हम तो सुधरेगा ज़माना’ प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। आजकल चारबाग कम्युनिटी में 12-18 वर्ष के बच्चों के साथ सत्र लेती हैं जिसमें क्रियाकलपों द्वारा बच्चों की सोच बदलने का काम कर रही हैं।
अनुष्का बताती हैं कि वह युवा और बच्चों के साथ इसलिए काम कर रही हैं क्योंकि बच्चे जो कम उम्र में सीख जाते है, वह अपने घर वालों को और आने वाली पीढ़ी, दोनों को ही सिखा सकते हैं और आगे चलकर जीवन में दूसरे लिंग का सम्मान कर पाएं। आगे वह स्कूल के बच्चों के साथ काम करेगी। अनुष्का का मानना है कि महिला और पुरुष दोनों को, सारे काम आने चाहिए, जिससे परिस्थितियां बिगड़ने पर वह संभाल सकें। पुरुष और महिलाओं को जब सामान्य अधिकार और मौके मिलेंगे, तभी देश का पूर्ण रूप से विकास हो सकेगा।