पापा, आप जैसा कोई नहीं…

(फादर्स डे पर विशेष)

-उदय प्रताप सिंह

लखनउ : पिता वह वट वृक्ष है जिसकी छांव में रहकर संतानें पल्लवित होती हैं। हाॅ इतना जरूर है कि उन पल्लवों में कुछ कांटेदार वृक्ष बन जाते हैं जो हमेशा कष्ट देते हैं, वहीं कुछ खुशबूदार बेल बन जाते हैं, जो पूरे वातावरण को सुगंधित कर देते हैं। पिता और संतान का रिश्ता, तभी से कल्पनाओं और भावनाओं की छांव में पल्लवित होने लगता है, जब से मां के गर्भ में हमारे अस्तित्व के होने की आहट सुनाई देती है। मां शारीरिक और मानसिक रूप से जुड़ती है तो पिता भी अपनी आत्मीयता की छांव अपनी संतान पर न्योछावर कर देता है, जिसमें उसके असंख्य सपने भी छिपे होते हैं। पिता के रूप में हर क्षण बदलाव होता है कभी वह दोस्त बन जाता है, कभी गुरू, तो कभी माॅ का लाड और दुलार भी देता है। अपनी संतान की जरूरत के हिसाब से उसमें बदलाव होता रहता है।

एक बच्चे की परवरिश में मां का जितना अहम रोल होता है उतना ही पिता का भी। पिता अब बच्चे की देखभाल के लिए अपना बहुत कुछ त्याग देते हैं बावजूद इसके उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान ही रहती है और बच्चे की हर ख्वाहिश पूरी करने में उन्हें सबसे ज्यादा खुशी मिलती है। लिहाजा पिता के लिए कुछ करने का मौका मिले तो खुद को धन्य मानना चाहिए। कभी बचपन की खेलती यादों के मध्य जाकर देख लीजिए… क्या पिता, आपके साथ सिर्फ एक पिता थे? याद आ जाएंगे वो तमाम उछलते, कूदते, मस्ती में खिलखिलाते लम्हें, जो पापा के साथ मिलकर की शैतानियों में आज भी महक रहे हैं। जब मम्मी की चिंताओं के बीच, हमारी मस्ती भरी हरकतों पर रोक लग जाती… तो पापा से सिर्फ ग्रीन सिग्नल ही नहीं मिलता… बल्कि पापा के साथ ही चलने लगती मस्ती की छुक-छुक गाड़ी। बचपन में बच्चे थे पापा भी हमारे साथ, चिंता की लकीरों के बीच भी।

जब हम बड़े होने लगे तो वह हमें अच्छी बुरी बातों की सीख भी देते रहे, काम करने के तरीके भी सिखाते रहे और जब जरूरत पडी तब दोस्त बनकर कंधे से कंधा मिलाकर चलने को भी तैयार रहे। हां रोक-टोक, डांट डपट भी रही लेकिन वह सब हमें सही रास्ता दिखाने के लिए। जब हम बडे हो रहे थे तो वह सपनो का आशियाना बुन रहे थे। हमारी पसंद नापसंद के बीच वह हमेशा सेतु के रूप में तटस्थ रहे। कितने भी कष्ट उन्हें झेलने पड़े लेकिन उन्होंने कभी भी पसंद को नकारा नहीं। जब कभी नये आसमान में उड़ने की जिद की तो उन्होंने हौसला बढ़ाने का काम किया। हिदायत भी दी और हिफाजत भी की। कभी अपने मन की फिक्र को जाहिर नहीं होने दिया। हर कदम पर उनका प्यार और दुआयें आगे बढ़ने का हौसला देती रहीं।

जब बेटा शिखर पर पहुंचता है तो सबसे ज्यादा फक्र उस पिता को ही होता है। फक्र से सिर उठाकर, सीना उॅचा करके समाज को बताता है कि आज मेरे बेटे ने मेरे सपनों को पूरा कर दिया। वास्तव में वह पल बहुत ही आत्मिक शांति से भरा हुआ होता है। संतान जब बडी हो जाती है। तो पिता के कदम रुकने लगते हैं। तब वह सारी बागडोर, सारी उम्मीदें, सारी जिम्मेदारियां और ढेर सारी दुआयें अपनी संतान पर छोड देते हैं। इसके बाद भी बिना बताये हमेशा पीछे खडे रहते हैं। ऐसा होता है एक पिता।

कब से हुई फादर्स डे की शुरूआत

प्रत्येक वर्ष हम जून महीने के तीसरे रविवार को पिता दिवस मनाते हैं और पिता के प्रति अपने प्यार का इजहार करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की कि इसकी शुरूआत कैसे हुई ? और इसके पीछे क्या कहानी छिपी हुई है। मुझे भी पहले इसकी जानकारी नहीं थी जब इसके विषय में जानने का प्रयास किया तो पता चला कि इसकी शुरूआत भी विदेश से हुई थी। बताया जाता है कि पिता दिवस यानी कि फादर्स डे सबसे पहले 19 जून 1910 को वाशिंगटन में मनाया गया था। इस वर्ष यानी कि 2019 में इसके 109 साल पूरे हो गये। इसके पीछे सोनेरा डोड की एक रोचक कहानी सामने आई। सोनेरा डोड जब बहुत छोटी सी थी, तभी उनकी मां का देहांत हो गया। पिता विलियम स्मार्ट ने सोनेरो के जीवन में मां की कमी नहीं महसूस होने दी और उसे मां का भी प्यार दिया। एक दिन यूं ही सोनेरा के दिल में विचार आया कि आखिर एक दिन पिता के नाम क्यों नहीं हो सकता? ….इस तरह 19 जून 1910 को पहली बार फादर्स डे मनाया गया। सन 1924 में अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कोली ने फादर्स डे पर अपनी सहमति भी दे दी। फिर 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जानसन ने जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाने की आधिकारिक घोषणा की। 1972 में अमेरिका में फादर्स डे पर स्थायी अवकाश घोषित हुआ। वर्तमान समय में यह पूरे विश्व में जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है।

संदेश…..
पापा आपका बहुत बहुत धन्यवाद, जब मैं छोटा था तो मेरे साथ बच्चा बनकर खेलने के लिए, जब मुझे दोस्त की जरूरत थी तब मेरा दोस्त बनने के लिए और जब मुझे अभिभावक की जरूरत थी तब पिता बनने के लिए। आपने जितना भी प्यार और दुलार मुझे दिया, हमने जितने भी पल साथ बिताये, आपने जितनी भी मुझे खुशियां दी और आपने जो मुझे सीख दी, उन सबने मुझे हमेशा खुशी और प्रसन्नता प्रदान की। आज आप मेरे बीच नहीं हैं लेकिन यह अहसास हमेशा रहता है कि आपका साया मेरे साथ है। हर कदम पर आप मेरे मार्गदर्शक बनकर अभी भी चल रहें हैं और जब तक मैं जीवित हूं तब तक चलते रहेंगें। हैप्पी फादर्स डे। आई मिस यू पापा।

अंत में ………..
सफर लम्बा है और मंजिल भी दूर है,
छोटी सी जिंदगी में हर शख्स मजबूर है।
पापा के प्यार से ही जिन्दा हैं सब यहाॅ,
वैसे तो दुनिया में पग पग पर शूल है।

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