अयोध्या पर आतंकी हमले का फैसला 14 वर्ष बाद आज, हाई अलर्ट पर राम नगरी

भगवान श्रीराम वनवास के 14 वर्ष बाद अयोध्या लौटे थे। यहां समय की अवधि तो 14 वर्ष ही है, लेकिन प्रकरण बिल्कुल जुदा है। प्रयागराज में स्पेशल कोर्ट आज से 14 वर्ष पहले राम जन्मभूमि परिसर में हुए आतंकी हमले में फैसला देगा। इस हमले के दोषी आतंकियों को आज सजा सुनाई जाएगी।

प्रयागराज की विशेष कोर्ट ने अयोध्या हमले के बाकी बचे पांच आतंकियों को सजा सुनाने की तारीख आज तय कर दी है। अयोध्यावासी रामलला के गुनहगारों को सजा-ए-मौत से कम नहीं चाहते। साधु-संत से लेकर श्रद्धालु तक कहते हैं कि सजा ऐसी हो कि कोई हमारे आराध्य पर हमले का दुस्साहस न कर सके। इन सभी को इसका संतोष है कि पांच जुलाई 2005 को श्रीराम जन्मभूमि परिसर में टेंट में विराजमान रामलला पर फिदायीन हमला करने आए पांच आतंकियों को उसी दिन रामनगरी में सजा-ए-मौत मिल गई थी। आतंकियों ने हैंड ग्रेनेड, एके 47, राकेट लांचर से लैस होकर हमला बोला था। हमलावरों ने सबसे पहले वह जीप ब्लास्ट कर उड़ा दी जिससे वह आए थे।

पांच जुलाई 2005 की सुबह करीब सवा नौ बजे आतंकियों ने रामजन्म भूमि परिसर में धमाका किया था। करीब डेढ़ घंटे तक चली मुठभेड़ में पांच आतंकवादी मार गिराए गए थे जिनकी शिनाख्त नहीं हो सकी थी। इस हमले में रमेश कुमार पांडेय व शांति देवी को जान गंवानी पड़ी थी जबकि घायल कृष्ण स्वरूप ने बाद में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।

इसके अलावा दारोगा नंदकिशोर, हेड कांस्टेबल सुल्तान सिंह, धर्मवीर सिंह पीएसी सिपाही, हिमांशु यादव, प्रेम चंद्र गर्ग व सहायक कमांडेंट संतो देवी जख्मी हो गये थे। पुलिस की तफ्तीश में असलहों की सप्लाई करने और आतंकियों के मददगार के रूप में आसिफ इकबाल, मो. नसीम, मो. अजीज, शकील अहमद और डॉ. इरफान का नाम सामने आया। इन सभी को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।2006 में प्रयागराज की विशेष कोर्ट के आदेश पर उन्हें फैजाबाद से प्रयागराज की सेंट्रल जेल नैनी जेल भेज दिया गया।

रामलला को उड़ाने आए थे, खुद उड़ गए फिदायीन आतंकी

पांच जुलाई 2005 रामनगरी के इतिहास का काला दिन थी। धमाकों और गोलियों की आवाज से रामनगरी हिल उठी थी। जिस समय अयोध्या में टेंट में विराजमान रामलला पर आतंकियों ने हमला किया, मंदिरों में रामनाम और घंटा-घडिय़ाल की ध्वनि गूंज रही थी, लोग पूजा-पाठ में व्यस्त थे। आतंकी हमले के प्रत्यक्षदर्शी आज भी घटना को याद करके सिहर उठते हैं। वह खौफनाक मंजर आज भी उनके जहन में जिंदा है।

अयोध्या में हाई अलर्ट

अयोध्या में हुए आतंकी हमले पर आज प्रयागराज में विशेष न्यायालय फैसला सुनाएगा। इसे लेकर कल से ही अयोध्या में हाई अलर्ट कर दिया गया है। इस फैसले के कारण कोई अप्रिय स्थिति न पैदा हो, इसको लेकर जिला व पुलिस प्रशासन बेहद गंभीर है। आरएएफ व पीएसी की अतिरिक्त कंपनी अयोध्या पहुंच चुकी हैं। एसएसपी आशीष तिवारी ने अयोध्या में सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया तथा मातहतों के साथ बैठक में आज के प्रस्तावित फैसले के मद्देनजर सतर्क रहने की हिदायत दी। होटल, ढाबों, धर्मशाला, सराय व गेस्ट हाउस के संचालकों से भी निगरानी और सुरक्षा में सहयोग मांगा है। अधिगृहीत परिसर की ओर जाने वाले रास्तों पर भी अतिरिक्त सुरक्षा कर्मी तैनात रहे। अधिगृहीत परिसर के भीतर सुरक्षा व निगरानी हर वक्त सख्त रहती है, फिर भी इसे और सतर्क रखने की हिदायत दी गई है।

अयोध्या के लिए काली तारीख

पांच जुलाई वर्ष 2005 अयोध्या की काली तारीख है। इसी दिन असलहे से लैस आतंकियों ने अधिगृहीत परिसर पर हमला किया था। आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच काफी देर मुठभेड़ हुई। अदम्य साहस का परिचय देते हुए सुरक्षा बलों ने पांच आंतकवादी ढेर कर दिए थे। इस आतंकी हमले में दो निर्दोष लोगों की जान चली गई थी। इस हमले की जांच में आतंकियों को असलहों की सप्लाई और मददगारों में आसिफ इकबाल, मो. नसीम, मो. अजीज, शकील अहमद और डॉ. इरफान का नाम सामने आया। सभी को गिरफ्तार कर पहले अयोध्या जेल में रखा गया। इसके बाद 2006 में हाईकोर्ट के आदेश पर केंद्रीय कारागार नैनी में दाखिल कर दिया गया। मंगलवार को इस मुकदमे में फैसला आना है। एसपी सिटी अनिल ङ्क्षसह व सीओ अयोध्या अमर ङ्क्षसह को निगरानी की कमान सौंपी गई है।

घटना से घर पर टूटा गम का पहाड़

पांच जुलाई 2005 को हुए आतंकी हमले में धमाके शिकार हुए गाइड रमेश पांडेय का परिवार आज भी सदमे से उबर नहीं पाया है। जिस समय रमेश पांडेय की मौत हुई उनकी बेटी की उम्र महज दो वर्ष थी। तब से सुधा पांडेय अपनी बेटी के साथ रमेश के बड़े भाई सुरेश पांडेय के परिवार के साथ रहती हैं। उनकी बेटी अंशिका ने इस वर्ष इंटरमीडिएट परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की है। सुधा कहती हैं कि किसी तरह पेट काटकर बेटी को इंटर तक पढ़ा दिया है लेकिन अब आगे कैसे पढ़ाऊं, समझ में नहीं आ रहा है। वहीं अंशिका सरकारी नौकरी करना चाहती है, मगर पढ़ाई में आर्थिक समस्या आड़े आ रही है। सुधा कहती हैं कि आज तक शासन-प्रशासन के किसी जिम्मेदार ने उनकी सुधि तक नहीं ली। हमले में शामिल सभी दोषियों को मौत ही मिलनी चाहिए।

चाय बेचकर कर रहे परिवार का गुजारा

आतंकी घटना के समय दवा लेने निकली शांति देवी धमाके का शिकार हो गईं। एक माह तक लखनऊ में इलाज के बाद उनकी मौत हो गईं। शांति अपने पीछे सात बच्चे छोड़ गईं। घटना के बाद से परिवार सदमे में है। परिवार में अब तक एक बेटी, दामाद, पुत्र समेत पांच लोगों की मौत हो चुकी है। पति रामचंदर यादव 61 वर्ष के हैं और किसी तरह चाय की दुकान चलाकर परिवार का गुजारा करते हैं। अभी एक बेटी की शादी का जिम्मा उनके कंधे पर है। कहते हैं कि हमारे कंधे अब बोझ उठाने की हिम्मत नहीं रखते लेकिन, करूं भी तो क्या, किसी तरह एक बेटी की शादी हो जाए तो मैं भी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊं, जीने की इच्छा भी अब नहीं है। मदद के नाम पर आज तक किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया। दोषी आतंकियों को कड़ी सजा मिले तभी हमें सुकून आएगा।

इलाज ने तोड़ दी कमर, अब कर्ज का बोझ

रामजन्मभूमि दर्शन मार्ग पर मुकुट बनाकर जीवन यापन करने वाले कृष्ण स्वरूप के परिवार पर पांच जुलाई का दिन काला साया बनकर आया। कृष्ण स्वरूप घर से बाहर निकले ही थे कि आतंकियों ने पैर में गोली मार दी। करीब आठ सालों तक इनका इलाज चला आखिरकार 2013 में कृष्ण स्वरूप की मौत हो गई। पत्नी श्यामादेवी की भी हालत अब खराब ही रहती है। बेटे रवि स्वरूप ने बताया कि पिता जी के आठ साल तक चले लंबे इलाज में हम कर्जदार हो गये। दुकान भी हमसे छिन गई, अब बेरोजगारी की स्थिति है। आतंकियों को फांसी से कम कुछ नहीं होना चाहिए।

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