वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के सबसे बड़े क्रेटर (एस्टेरॉयड गिरने से बना गड्ढा) में एक ऐसी सामग्री की खोज की है, जिसकी वजह से चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में बदलाव आता है। अमेरिका की बायलर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह सामग्री चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव ‘एटकेन बेसिन’ में पाई गई है और इसमें एस्टेरॉयड की धातु का मिश्रण है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एस्टेरॉयड के टकराने से ही चंद्रमा पर क्रेटरों का निर्माण हुआ है।
बायलर यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर पीटर बी जेम्स ने कहा कि इन क्रेटरों में पाई जाने वाली धातु का आकार अमेरिका के हवाई द्वीप से पांच गुना बड़ा है। कई क्रेटर अंडाकार भी हैं जो 2,000 किलोमीटर तक चौड़े और कई मील गहरे हैं। इतने बड़े आकार के बावजूद इन्हें पृथ्वी से देखा नहीं जा सकता क्योंकि ये चंद्रमा के सुदूर दक्षिणी क्षेत्र में पाए जाते हैं।
चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल में हो रहे परिवर्तनों को मापने के लिए शोधकर्ताओं ने नासा की ग्रेविटी रिकवरी और इंटीरियर लेबोरेटरी (जीआरएआइएल) मिशन के लिए उपयोग किए जाने वाले स्पेसक्राफ्ट के डाटा का विश्लेषण किया। जेम्स ने कहा कि जब हमने लूनार रीकॉसेंस ऑर्बिटर से चंद्रमा की स्थलाकृति के डाटा का अध्ययन किया तो पाया कि चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव एटकेन बेसिन के सैकड़ों मील नीचे बड़ी मात्रा में रहस्यमयी धातु मौजूद है।
उन्होंने कहा कि इससे यह पता चलता है कि चंद्रमा पर क्रेटरों के जिम्मेदार यह एस्टेरॉयड ही हैं और इनकी धातु चंद्रमा की निचली सतह में मौजूद है। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित शोध के अनुसार एस्टेरॉयड के प्रभावों का कम्प्यूटर सिमुलेशन के माध्यम से अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि इनकी ऊपरी परत चंद्रमा से टक्कर के दौरान निकल गई और बने क्रेटरों में जमा हो गई।