नीतीश कुमार की ओर से लिए जा रहे फैसलों की वजह से यहां की राजनीति की हवा हो गई गर्म…

 केंद्र में दोबारा से बीजेपी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनने के बाद से लगभग पूरे देश में राजनीतिक सरगर्मी शांत है, लेकिन बिहार (Bihar) में सुगबुगाहट दिख रही है. दिलचस्प बात यह है कि बिहार (Bihar) में बीजेपी के साथ मिलकर 40 में से 39 लोकसभा सीटें जीतने वाली जनता दल युनाइटेड (JDU) के नेताओं की ओर से हो रही बयानबाजी से यहां की राजनीति में हलचल बनी हुई है. लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आने के बाद से बिहार (Bihar) के मुख्ख्यमंत्री और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार (Nitish kumar) की ओर से लिए जा रहे फैसलों की वजह से यहां की राजनीति की हवा गर्म हो गई है.

नीतीश कुमार (Nitish kumar) ने शपथ ग्रहण समारोह से ठीक पहले ऐलान किया कि जदयू पीएम नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में हिस्सेदार नहीं होगी. इसके बाद नीतीश कुमार (Nitish kumar) ने बिहार (Bihar) में मंत्रिमंडल विस्तार किया तो उन्होंने आठ नए मंत्रियों में से एक भी पद बीजेपी विधायक को नहीं दिए. इसी बीच नीतीश कुमार (Nitish kumar) पूर्व मुख्यमंत्री और महागठबंधन के सहयोगी जीतन राम मांझी की इफ्तार पार्टी में पहुंच गए. गौर करें तो एनडीए के अन्य घटक दलों के नेता जहां मीडिया से लगभग गायब हैं, वहीं नीतीश कुमार (Nitish kumar) लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं. ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं आखिर नीतीश कुमार (Nitish kumar) हमेशा चर्चाओं में क्यों बने रहते हैं.

नीतीश कैसे हैं GERO
यूं तो अंग्रेजी में GERO कोई शब्द नहीं है. यह जापान के एक शहर का नाम है. इस शहर की खासियत है कि यहां के लोग काफी टेक्निकली काफी स्ट्रांग माने जाते हैं. इस शहर में तकनीक का काफी प्रभाव देखने को मिलता है. इंजीनियरिंग के स्टूडेंट रह चुके नीतीश कुमार (Nitish kumar) भी देश की राजनीति के काफी टेक्निकल शख्सियत हैं. अगर GERO के हर शब्द के मायने निकालें तो भी यह नीतीश कुमार (Nitish kumar) पर काफी फिट बैठता है.

G: Generic (सामान्य) : इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि नीतीश कुमार (Nitish kumar) 

अपनी सेक्युलर छवि बनाए रखने के लिए नीतीश बीजेपी के साथ रहते हुए भी मुस्लिमों के करीब बने रहते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के विरोध के नाम पर उन्होंने लालू यादव से हाथ मिला लिया था. लालू के साथ मिलकर सत्ता में वापसी कर गए. फिर उन्होंने बीच में ही लालू का साथ छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए. इस फैसले को लेकर विरोधी उन्हें पलटू कहकर संबोधित करते हैं, लेकिन कुल मिलाकर देखें तो ये उनका लचीला स्वभाव ही है कि वह किसी भी गठबंधन में फिट बैठ जाते हैं.

O: Optimist (आशावादी) : अगर आप आशावादी नहीं हैं तो राजनीति में आपके लिए कोई जगह नहीं है. नीतीश कुमार (Nitish kumar) में यह गुण भी काफी भरा हुआ है. इसी गुण की वजह से नीतीश पहले लालू से अलग होकर एनडीए के साथ हुए और मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें उम्मीद थी कि अगर त्रिशंकु परिणाम आए तो वह प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं. हालांकि ऐसा नहीं हुआ.

इन सारे गुणों से भरे हुए नीतीश कुमार (Nitish kumar) बिहार (Bihar) की राजनीति में मौजूदा वक्त में ऐसी शख्सित बन गए हैं, जिनके बिना वहां कोई भी पार्टी सत्ता में नहीं आ सकती है. मुस्लिमों और यादवों के वोट के दम पर करीब 15 साल बिहार (Bihar) की सत्ता में रहे लालू यादव और उनके परिवार के वर्चस्व को नीतीश कुमार (Nitish kumar) ने ही खत्म किया है. उसके बाद नीतीश कुमार (Nitish kumar) की अगुवाई में ही बीजेपी बिहार (Bihar) में करीब 12 साल से सत्ता का स्वाद चख रही है. 

साल 2015 के बिहार (Bihar) विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार (Bihar) में पूरा जोर लगाया लेकिन उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी. वहीं लालू यादव और उनका परिवार भले ही नीतीश कुमार (Nitish kumar) जितना कोसे लेकिन इनके बिना वे भी सत्ता का स्वाद नहीं चख पा रहे हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश और लालू मिलकर लड़े. दोनों की पार्टियों ने 101-101 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए. हालांकि लालू की पार्टी आरजेडी के 80 और नीतीश की पार्टी के 71 विधायक जीतकर आए. यहां तक की नीतीश के चेहरे के चलते कांग्रेस भी राज्य में 27 सीटें जीत गई. करीब डेढ़ साल सरकार चलाने के बाद नीतीश ने पाला बदल लिया और एनडीए में चले गए.

2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने जातीय समीकरण बिठाते हुए गठबंधन खड़ा किया था, लेकिन वह नीतीश और मोदी के चेहरे के आगे पूरी तरह फेल साबित हुआ. आलम यह है कि कांग्रेस और आरजेडी दोनों नीतीश को अपने साथ आने का ऑफर दे रहे हैं. बिहार में 2020 में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत के मामले में बीजेपी का पलड़ा भारी है, जिसके चलते बिहार बीजेपी के नेता अभी से खुद का बड़ा भाई बताने में जुट गए हैं. 

काफी सर्व सुलभ नेता हैं. साथ ही वे लोकप्रिय भी हैं. नीतीश कुमार (Nitish kumar) की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जाति देखकर वोट देने वाले राज्य के वोटर नीतीश को पिछले 15 साल से अपना नेता मान रहे हैं. गौर करने वाली बात यह है कि नीतिश कुमार जिस जाति से आते हैं उसकी आबादी बिहार (Bihar) में करीब छह फीसदी ही है.

E: Intelligent (बुद्धिमान) : नीतीश कुमार (Nitish kumar) की बु्द्धिमान ना होते तो शायद बिहार (Bihar) की राजनीति में टिक ना पाते. बेहद साधारण परिवार से आने वाले नीतीश जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान नेता बने थे. उन्होंने बिहार (Bihar) में अपनी बुद्धिमानी से जातीय समीकरण को तोड़ा है. बिहार (Bihar) में उन्होंने दलितों के बीच महादलित का बंटवारा किया. शराबबंदी और छात्राओं को साइकिल देकर महिलाओं के लोकप्रिय बने हुए हैं. नीतीश की ये बुद्धिमानी ही है कि उन्होंने जातीय सोच को तोड़ते हुए समाज के हर तबके की महिलाओं के लोकप्रिय नेता बने हुए हैं.

R: Resilient (लचीला) : गठबंधन की राजनीति में सबसे जरूरी गुण लचीलापन माना जाता है. नीतीश कुमार (Nitish kumar) में यह गुण कूट-कूट कर भरा हुआ है. 1990 के दशक में नीतीश कुमार (Nitish kumar) जनता दल में रहे और लालू प्रसाद यादव (Lalu prasad yadav) को सत्ता में बनाए रखने के लिए राजनीति करते रहे. जब उन्हें लगा कि लालू के साथ रहते हुए उन्हें कुछ खास हासिल नहीं होगा तो वे बीजेपी साथ हो लिए. अटल बिहार (Bihar) वाजपेयी की सरकार में पांच साल मंत्री रहे. फिर बीजेपी के साथ ही मिलकर लालू प्रसाद यादव (Lalu prasad yadav) से सत्ता छिनने में सफल रहे.

वहीं नीतीश कुमार पावर पॉलिटिक्स के फॉर्मूले के तहत अभी से अपनी ताकत का अहसास करा रहे हैं. हालांकि राजनीति के हर जानकार मानते हैं कि मौजूदा वक्ता में नीतीश कुमार जिस भी खेमे में जाएंगे 2020 में वही सत्ता में आएगी. ऐसे में कह सकते हैं कि नीतीश कुमार (Nitish kumar) ऐसा चेहरा हैं जिनके बिना बिहार (Bihar) में कोई हीरो नहीं बन सकता है.

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