सदर और नर्वल तहसील में फर्जी दस्तावेज लगाकर भूदान की करीब तीन सौ बीघा जमीन बेचे जाने के मामले में अब एक नया और चौंकाने वाला मोड़ आ गया है। जमीन पर कब्जे व बेचने में खुद राजस्व विभाग के अधिकारियों ने ही भूमाफिया का पूरा साथ दिया था। तत्कालीन तहसीलदार, कानूनगो और लेखापाल की मदद से भूमाफिया ने यह फर्जीवाड़ा किया। तीनों को पुलिस ने मुकदमे में आरोपित बनाया है। जुलाई 2015 में इस क्षेत्र की सरकारी जमीन को लेकर खेल फाइल में दबा रहने के बाद जुलाई 2018 में और जमीनों पर कब्जे से फिर उछला तो बिधनू और नौबस्ता थाने में रिपोर्ट दर्ज हुई। जांच में राजस्व अधिकारियों की इसमें मिलीभगत का पर्दाफाश हुआ। अब राजस्व महकमे में खलबली मची हुई है।
एक साल पहले उजागर हुआ मामला
नर्वल के तत्कालीन कानूनगो अशोक कुमार मिश्र ने 17 जुलाई 2018 में बिधनू थाना क्षेत्र के घुरूवा खेडा निवासी रामभजन, राम नरेश और राजेश पर एडीएम वित्त एवं राजस्व के फर्जी हस्ताक्षर बनाकर सरकारी जमीन को बेचने का मुकदमा दर्ज कराया। मामले में दारोगा आनंद शर्मा ने जांच की तो सामने आया कि यशोदानगर के भूमाफिया नफीस अहमद व बिधनू गुलाबपुर के सुशील कुशवाहा ने तत्कालीन तहसीलदार नर्वल प्रमोद झा (वर्तमान में एसडीएम फतेहपुर), तहसील नर्वल के प्रभारी कानूनगो अशोक मिश्र, लेखपाल घुरुवाखेड़ा ब्रजेश मिश्र की मदद से सरकारी जमीन पर प्लाटिंग कर डाली।
दस्तावेज खंगालने पर उजागर हुई हकीकत
दस्तावेज खंगाले गए तो सामने आया कि इन लोगों ने आरजी संख्या 194 व 223 की तरह ही 195 के साथ ही आरजी संख्या 12 और 243 मौजा कुर्रियां समेत कई संपत्ति में खेल कर दिया। इसमें किदवईनगर निवासी अधिवक्ता सचिन सिंह ने आरजी 195 की खतौनी में राज्य सरकार के कब्जे वाले आदेश को फाड़कर जमीन किसान सीताराम व उसके भाइयों के नाम करवा दी। आरजी 12 किसान रविंद्र कुशवाहा के नाम करवा दी। इन लोगों ने एडीएम वित्त एवं राजस्व के फर्जी हस्ताक्षर से दस्तावेज तैयार कर जमीन की बिक्री कर दी। इसमें आरजी 243 भी इसी तरह बेची गई। फर्जीवाड़े में नवर्ल तहसील के संबंधित अधिकारी की संलिप्तता भी पाई गई।
कमिश्नर और डीएम को सौंपी रिपोर्ट
विवेचक आनंद शर्मा ने राजस्व कर्मचारियों और अधिकारियों की संलिप्तता सामने आने पर रिपोर्ट जिलाधिकारी से लेकर कमिश्नर तक सौंप दी। रिपोर्ट में विवेचना का पूरा जिक्र करते हुए आरजी 12 की भूमि फर्जी अभिलेख से दाखिल-खारिज होने की बात सामने आने के बाद भी कार्रवाई न करने के लिए तत्कालीन अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाए गए हैं। संबंधित उपजिलाधिकारी संजय कुमार व डीके सिंह तहसील नर्वल की भी भूमिका स्पष्ट नहीं पाई गई। रिपार्ट में कहा गया कि इनके विरुद्ध भी राजस्व प्रशासन के सक्षम अधिकारी के माध्यम से जांच कराना आवश्यक है।