विक्रम विश्वविद्यालय के ज्योतिर्विज्ञान के विभागाध्यक्ष हैं डॉ राजू मुसलगांवकर….

हाल में संपन्न लोकसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की भारी बहुमत से जीत को लेकर फेसबुक पर भविष्यवाणी करने के कारण निलंबन की कार्रवाई झेलने वाले उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के ज्योतिर्विज्ञान विभागाध्यक्ष को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से राहत मिली है.

हाई कोर्ट की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति विवेक रुसिया ने विक्रम विश्वविद्यालय की ज्योर्तिविज्ञान अध्ययनशाला के प्रमुख राजेश्वर शास्त्री उर्फ राजू मुसलगांवकर (53) की याचिका पर मंगलवार को दोनों पक्षों के तर्क सुने और मुसलगांवकर के निलंबन से जुड़े महीने भर पुराने आदेश पर अगली सुनवाई तक के लिये रोक लगा दी. अवकाशकालीन पीठ ने मामले में प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, उज्जैन के जिलाधिकारी-सह-जिला निर्वाचन अधिकारी और विक्रम विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी करते हुए उनसे चार हफ्ते में जवाब मांगा है.

‘भारतीय जनता पार्टी 300 के पास और राजग 300 पार’
मुसलगांवकर पर जिस चुनावी भविष्यवाणी को लेकर सात मई को निलंबन की कार्रवाई की गई थी, वह उनके फेसबुक खाते पर 28 अप्रैल को साझा की गई थी. इस पोस्ट में कहा गया था, “भारतीय जनता पार्टी 300 के पास और राजग 300 पार.” हालांकि, मुसलगांवकर ने अगले ही दिन सार्वजनिक क्षमायाचना के साथ यह फेसबुक पोस्ट हटा ली थी. उन्होंने इसके बाद फेसबुक पर 29 अप्रैल को जारी पोस्ट में कहा था, “मेरे द्वारा ज्योतिषीय आकलन मात्र शास्त्रीय प्रचार की दृष्टि से किया गया था. यदि मेरे प्रयोग से किसी की भावना आहत होती है, तो मैं क्षमा चाहता हूं.”

हाई कोर्ट में अपील
बहरहाल, इस पोस्ट को लेकर मुसलगांवकर के खिलाफ प्रदेश युवा कांग्रेस के एक नेता ने उज्जैन के जिला निर्वाचन अधिकारी को शिकायत कर दी थी. इसके बाद उन्हें लोकसभा चुनावों की आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में निलंबित कर दिया गया था. मुसलगांवकर ने अपने निलंबन को कानूनन गलत बताते हुए इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी.

हाई कोर्ट में उनकी ओर से पेश याचिका में दलील दी गयी कि उन्हें सरकारी सेवक मानते हुए उन्हें निलंबित करने का अनुचित आदेश जारी किया गया है, जबकि वह सरकारी सेवक नहीं, बल्कि विक्रम विश्वविद्यालय के कर्मचारी हैं. उनकी लोकसभा चुनावों में ड्यूटी भी नहीं लगी थी. लिहाजा उन पर चुनावी आदर्श आचार संहिता लागू ही नहीं होती. मुसलगांवकर की याचिका में उनकी चुनावी भविष्यवाणी के संबंध में यह भी कहा गया कि उन्होंने अपने फेसबुक खाते पर जो कुछ भी लिखा, वह “विशुद्ध अकादमिक प्रकृति” का था और इस पोस्ट से उनका किसी भी राजनीतिक पार्टी के साथ संबंध स्थापित नहीं होता है.

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