हर्ष मंदर ने अपने इस्तीफे में लिखा, “अल्पसंख्यकों और सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े किसी भी मानवाधिकार अभियान या जांच के लिए मुझसे संपर्क करने के मुद्दे पर एनएचआरसी की लगातार चुप्पी के कारण, यह प्रतीत होता है कि एनएचआरसी के विशेष पर्यवेक्षक के तौर पर मेरी कोई सकारात्मक भूमिका नहीं है.” उन्होंने कहा, “इसलिए मैंने इस दायित्व से इस्तीफा देने के लिए अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी.”
मंदर ने अपने त्यागपत्र में शिकायत की है कि उन्हें यह बताया गया था कि एनएचआरसी अल्पसंख्यकों के अधिकार और सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित मामलों को देखने के लिए समय-समय पर उनकी सेवाएं लेगा, लेकिन आयोग ने इन मुद्दों पर एक बार भी उनसे संपर्क नहीं किया. उनका ये इस्तीफा और बयान विडम्बना की और इशारा कर रहा है कि राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग में करने के लिए कुछ नहीं बचा.
इस बात का सत्य से कितना नाता है ये आम जान भी समझ सकते है कि हिदुस्तान में राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग के पास काम नहीं है और इस कदर नहीं है कि उसके अधिकारी पद त्याग रहे है. ये त्याग पत्र कई इशारे कर रहा है और उनका ये बयान एक सन्देश भी है जिसे जल्द समझ लिए जाने की दरकार है. देश के हालात की बात करे तो आज सबसे ज्यादा व्यस्त विभाग ही राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग हो होना चाहिए