अमेठी : लगभग 42 वर्षों के बाद सियासत ने फिर करवट बदली है। अमेठी संसदीय क्षेत्र से राहुल गांधी की हार ने चार दशक पूर्व 1977 की जनता लहर में जनसंघ घटक के रवींद्र प्रताप सिंह ‘राजा भइय्या’ के सामने इंदिरा गांधी के शक्तिशाली बेटे संजय गांधी की कड़ी शिकस्त की याद ताजा कर दी है। राहुल गांधी के चाचा थे स्व.संजय गांधी। गांधी परिवार का नाता अमेठी से जोड़ने का श्रेय उन्हें ही जाता है। हालांकि करारी शिकस्त के बावजूद उन्होंने अमेठी से नाता कायम रखा और 1980 में शानदार वापसी की। दुर्भाग्य था कि एक विमान हादसे में उनकी जून 1980 में दुखद मौत हो गई और फिर इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी इंडियन एयरलाइन्स की पायलट की नौकरी छोड़ यहां से 1981 में सांसद बने। तभी से अमेठी गांधी परिवार की होकर रह गई। यहां तक कि उसने 1989 के आमचुनाव में वीपी लहर के दौरान राजीव को चुनौती देने आए महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी को भी तवज्जो नहीं दी। उनकी जमानत तक जब्त हो गई।
स्व.राजीव के बाद 91 व 96 में गांधी परिवार की चरणपादुका लेकर कैप्टन सतीश शर्मा भी कांग्रेस के टिकट पर यहां से कामयाब हुए, हालांकि फिर 98 में बीजेपी के डॉ संजय सिंह ने उन्हें पछाड़ दिया।..और फिर 99 से स्वयं सोनिया गांधी ने विरासत को संभाला दो बार। 2009 व 2014 में राहुल यहां से सांसद चुने गए, पर इस बार जनता ने भाजपा की स्मृति ईरानी के लिए मूड बना लिया। उन्हें पराजय के बावजूद लगातार अमेठीवासियों से जुड़ाव का लाभ मिला। नतीजा गांधी परिवार के इस कांग्रेसी दुर्ग को ध्वस्त करने में कामयाब रहीं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी से अपनी हार स्वीकारी और स्मृति ईरानी को जीत की बधाई दी। उन्होंने यह भी कहा कि अब ईरानी अमेठी की जनता का ख्याल रखें।
मेनका को भी करना पड़ा था हार का सामना
पति संजय गांधी की असामयिक मौत व सास इंदिरा गांधी से विवाद के बाद विरासत की जंग लड़ने 1984 में मेनका गांधी भी अमेठी पहुंचीं। उन्होंने संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में जेठ कांग्रेस उम्मीदवार राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव भी लड़ा। पर किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और उनकी जबरदस्त हार हुई। हालांकि अब वही मेनका 35 वर्षों बाद अपने पति की कर्मस्थली रहे सुलतानपुर (बंटवारे के पहले अमेठी इसी जिले का हिस्सा था)से मौजूदा चुनाव में निर्वाचित होने में कामयाब रहीं।